वसुंधरा से राजपुत्र के जन्म के शुभ समाचार प्राप्त होते ही राज सेवको ने विविध वाजिन्त्र नाद से वातावरण को मुखरित कर दिया। विलासिनी स्त्रियों के टोले मिलकर राजमार्ग पर नृत्य करने लगे। नगर की कुलवधुए सुंदर वस्त्र-अलंकारो से सज्ज होकर राजमहल के विशाल पटाँगन में एकत्र होकर खुशी में झूमती हुई गीत गाने लगी। राजपरिवार की नृत्यांगनाए खिलखिलाती हुई अपने भृत्यों के साथ नृत्य करने लगीं। युवान लोग राजमार्ग पर एकत्र होकर ताली बजा कर जय जयकार करने लगें। महाराज गुणसेन उदारता से दान देने लगें। राजमहल का प्रागण हजारों स्त्री-पुरुषों की आवाजाही से भर गया।नगर मैं चारोतरफ आंनद उत्सव चालू हो गए थे। प्रभात हो चुका था। सूरज की सुनहरी किरणों के स्पर्श के आकाश भी चमकने लगा था। पेड़ो पर चहकते पक्षियों के वृदं जैसे मीठे गीत गाने लगे थे।और इधर महातपस्वी अग्निशर्मा ने तपोवन से राजमहल की ओर प्रयाण कर दिया था। तपोवन से राजमहल तक का रास्ता सजाया हुआ था। रास्ते पर सुगंधित जल छिड़का हुआ था। जगह जगह पर सुंदर तोरण लटकाये हुए थे धजा पताकाएं शोभा दे रही थी। प्रजा नाच गान में मशगूल होकर उन्मत्त हो उठी थी। राजमहल इन्द के महल की जैसे कि स्पर्धा कर रहा था। और अग्निशर्मा ने राजमहल के द्वार पर प्रवेश किया पर वहाँ महातपस्वी का स्वागत करने वाला कोई नही था। महातपस्वी पधारिए आपका स्वागत है- ऐसी जबान में स्वागत करने वाला कोइ नही था। लोग प्रजाजन राजपुरुष सभी नाच रहै थे, गा रहे थे। कूद रहे थे। खुशीयो के मारे पागल हुवे जा रहै थे। पर किसी ने अग्निशर्मा के सामने देखा तक नही। अग्निशर्मा का समग्र चित्ततंत्र आलोड़ित हो उठा। यह किस लिए ? यह सब क्यो ? केवल मेरा मजाक है यह! मुझे हर बार जलील करने का तरीका है यह ! यह मेरा भयानक उपहास है। तीन-तीन महीने के मेरे उपवास का पारणा चुका देने का यह पूर्वनियोजित षडयंत्र सा उत्सव है। कहा है राजा गुणसेन ? कहा है उसकी रानी औऱ कहा मर गया उसका लम्बा-चौड़ा राजपरिवार। मुझे क्यो इस तरह जलील होकर यहां पर खड़े रहना चाहिए।
आगेस्गली पोस्ट मे…