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अग्निशर्मा का अनशन – भाग 2

प्राणनाथ आपके मनोरथ शुभ है। श्रेष्ठ है। यह सब आप बड़ी सरलता से कर सकेंगे। आप के लिए सब कुछ सम्भव है। देवी इस महात्मा को मैने किशोरावस्था में काफी कष्ठ दिया हैं। इनके मन मे मेरे लिए किसी भी कोने में मेरे लिए दुर्भवना या नफरत का अंश ना रहे, इस तरह मुझे इनकी सेवा भक्ति करनी है। महरानी वसन्तसेवा सगर्भा थी। प्रसूति के दिन नज़दीक आ रहे थे। रह रहकर महारानी को डर लग रहा था। पारणे के दिन ही तो प्रसूति नही होगी न? पहले पारणे के दिन महारजा को भयंकर शिरोवेदना हो आई थी। दुसरे पारणे के समय अचानक युद्ध प्रयाण का प्रसंग आ पड़ा था। इस बार भी कही ये प्रसुति का विघ्न न आ धमके। रानी मन ही मन आशंकित थीं। पर उसने महाराजा से कुछ कहा नही।यदि में ऐसी शंका व्यक्त करुँगी तो महाराजा के अरमानों की इमारत ढह जायेगी। यह सोचकर रानी ने महाराजा को प्रसुति की बात कही ही नही। हालांकि उसने परिचारिकाओं को जागृत कर दी थी। । महाराजा गुणसेन के मन मे तपोवन ही तपोवन छाया हुआ था। अग्निशर्मा के विचारों में ही वे व्यस्त थे। वसन्तसेवा की प्रसुति के बारे मे तनिक भी विचार उनके मस्तिष्क मे उठा नही था। आदमी सोचता क्या और होता क्या है? पारणे का दिन आ पहुंचा। महाराजा गुणसेन उनके शयनखंड मे थे। निद्रा त्याग कर के अभी वे पलँग पर बैठे ही थे कि, इतने में महारानी वसन्तसेवा की प्रिय परिचारिका वसुंधरा की आवाज़ सुनाई दी। महाराज मैं आ सकती हूं क्या ? आ सकती है। वसुंधरा ने महाराज के खंड मैं प्रवेश किया। सर पर अंजलि रचनाकर आंनद भरे स्वर मे उसने कहा महाराज, रात्रि के अंतिम प्रहर मे आपके अभ्युदय के लिए प्रजा के सदनसीब से महारानी ने पुत्र को सुखपूर्वक जन्म दिया है। लाखो बरसो का दीर्घकाल पुत्र प्राप्ति की चाहना में बीता है। आज वह चाहना फलवती बनी थी। राजा गुणसेन सहर्ष से सिहर उठे। उनके ह्रदय में आनंद का ज्वार उठा। वे खड़े हो गये एवं शरीर पर जो अलंकार-गहने पहने थे, वे सब उतारकर वसुंधरा को भेंट कर दिये ओर उससे कहा
वसुंधरा मेरी आज्ञा से तु निकटस्थ प्रतिहारी को बुलाकर सूचना दे कि वह घंट बजाए। राज्य के तमाम बंदीजनो को काराग्रह से मुक्त कर दिया जाये। नगर में उद्घोषणा करवा दि जाए कि महारानी ने पुत्ररत्न को जन्म दिया है इसलिए प्रजाजनों आंनद मनाओ। खुशियां मनाओ। वसुंधरा मेरे अज्ञाकित जितशत्रु वगैरह सभी राजाओ को शीघ्र ही ये मंगल समाचार भिजवाने के लिये मंत्री से कहना। और मंत्री से कहकर नगर मे भव्य आनंदोत्स्व मनाने की तैयारियां की जाए। वसुंधरा ने प्रणाम करके कहा महाराज आपकी आज्ञा के मुताबिक प्रतिहारी को कहकर ये सारे कार्य करवा देती हूँ।

आगे अगली पोस्ट मे…

अग्निशर्मा का अनशन – भाग 1
April 10, 2018
अग्निशर्मा का अनशन – भाग 3
April 10, 2018

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