ह्रदय में वैराग्य के रतनदीप को जलता हुआ रखकर सुरसुन्दरी संसार के सुखभोग में जी रही है । पाँचो इन्द्रियों के वैषयिक सुख भोगती है । अमरकुमार के दिल में भी वैराग्य का दिया जल उठा है । वह दिया बुझा नहीं है…। संसार के कर्तव्यों का पालन करते जा रहे है । धर्मशासन की प्रभावना के भी अनेक कार्य करते जा रहे है ।
महीने बीत जाते है ।
एक दिन बेनातट नगर से राजदूत आया और उसने शुभ सन्देश सुनाया :
‘गुणमंजरी ने पुत्ररत्न को जन्म दिया है । माता और पुत्र दोनों के स्वास्थ्य कच्छा है, पुत्र भी खूबसूरत और निरोगी है ।’
धनावह श्रेष्ठि ने राजदूत को कीमती रत्नों का हार भेंट किया। मन्दिरों में उत्सव रचाये गए । भव्य भोजन समारंभों का आयोजन हुआ । गरीबों को खुले हाथ दान दिए गए ।
राजा रिपुमर्दन ने कैदियों को मुक्त कर दिये । समग्र राज्य में महोत्सवों का आयोजन किया गया । प्रजा आनंदित हो उठी ।
अमरकुमार ने मुत्यु जय को बेनातट नगर जाने के लिए रवाना किया , गुणमंजरी को पुत्र के साथ चंपा लिवा लाने के लिये ।
महाराजा रिपुमर्दन की राजसभा भरी हुई थी । अमरकुमार महाराजा के पास ही सिंहासन पर बैठा हुआ था । राज्यसभा का कार्य चालू हो गया था । इतने में उघान के रक्षक माली ने राजसभा में प्रवेश किया । महाराजा को प्रणाम कर के उसने निवेदन किया :
‘महाराजा , ज्ञानधर नाम के महामुनि ने अनेक मुनिवरों के साथ चंपानागरी को पावन किया है । हे कुपावंत, हे महामुनि सूरज से तेजस्वी है , चन्द्र जैसे शीतल है—- भारन्ड पक्षी से अप्रमत्त है… उनकी आंखों में से कूअपा बरस रही है —– उनकी वाणी में से ज्ञान के फूल झरते है ।
राजेश्वर । ऐसे महामुनि चंपा के बाहरी उपवन में पधारे हुए है ।’
महाराजा रिपुमर्दन हर्ष से गदगद हो उठी। सिंहासन पर से खड़े हुए । बाहरी उपवन की दिशा में सात कदम चलकर उन्होंने महामुनि को भाववंदना की और इसके बाद उधानरक्षक को सुवर्ण की जिह्रा भेंट की । अनेक अलंकारों से उसको ढंक दिया ।
महामंत्री को आज्ञा देते हुए कहा :
‘नगर में ढिंढोरा पिटवा दो कि नगर के बाहरी उपवन में ज्ञानधर महामुनि पधारे हुए है । सभी नगरजन उन महामुनि के दर्शन कर के पावन बने । उनका उपदेश सुनकर धन्य बने ।
हसितदल , अश्वदल , रथदल और पदातिसेन्य को तैयार कीजिए … अच्छी तरह सजाओ … राजपरिवार के साथ मैं भी उन पूज्य मुनिभगवंत के दर्शन – वंदन करने के लिये जाऊंगा । राजसभा का कार्य स्थगित कर दो ।’
राजसभा का कार्य पूरा हुआ । अमरकुमार और सुरसुन्दरी भी महाराजा के साथ जाने के लिये तैयार हुए ।
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