महामुनि ने पूर्वजन्म की कहानी पूरी की ।
अमरकुमार और सुरसुन्दरी उस कथा के दृश्यों को अपने मानसपट पर चित्रांकन की भांति उभरते देखने लगे । दोनों को जाति–स्मरण ज्ञान प्रगट हो गया था । पूर्वजन्म की जो जो बातें बतायी थी वे सारी बातें स्मृति पथ में उभर आई ।
दोनों की आंखे खुशी के आँसुओ से भर आईं । सुरसुन्दरी ने गुरुदेव को वंदना कर कहा :
‘गुरुदेव आपने हमारे पूर्वजन्म की जो बातें कही…. वह बिल्कुल यतार्थ है….। मैने खुद ने जातिस्मरण ज्ञान से उन बातों को जाना है !’
अमरकुमार ने कहा : ‘गुरुदेव, मुझे भी जातिस्मरण ज्ञान प्रगट हुआ है । आपकी कही हुई बातें सच्ची है…..यतार्थ है !’
सुरसुन्दरी ने गदगद स्वर से कहा :
‘कृपानिधान, इस भीषण भवसार में मोहवश…. अज्ञानवश…. अनेक पापचरण करनेवाले वैसे हमारा आप उद्धार करे । अब नही रहना है इस संसार में ! नही चाहिए संसार के सुखभोग ! नही चाहिए वैभव-संपत्ति….। बस गुरुदेव, अब तो आपके चरणों में हमे शरण दे दीजिये । आप जैसे परमज्ञानी गुरुदेव के मिलने के पश्चात भी क्या…. हम संसार सागर में डूब जायेंगे ? ?
अमरकुमार भाव विभोर बनता हुआ बोल उठा :
‘गुरुदेव, आप निष्कारण वत्सल है…भवसागर से तैरने के लिये जहाज रूप हो… हमे तारो गुरुदेव !’
ज्ञानधर महामुनि ने कहा :
हे पुण्यशाली दंपति, भवसागर से तैरने का एक ही उपाय है और वह है चारित्रकर्म! सर्व-विरतिमय संयमधर्म उस धर्म का स्वीकार कर के भवसागर को तैर जाओ !’
‘गुरुदेव, हमारे पर कृपा कर के हमे यह चारित्रधर्म प्रदान करे…. । हमें अब आपकी ही शरण है !’ अमरकुमार ने महामुनि के चरणों में अपना मस्तक रख दिया ।
सुरसुन्दरी के मन में एक विचार कौंध उठा । उसने गुरुदेव से कहा : ‘हे कृपावंत, आप कुछ दिन यहां चंपानगरी में विराजने की कृपा करें । हमारे माता-पिता की अनुमति लेकर हम यथाशीघ्र आपके चरणों में उपस्थित होंगे ।’
मुनिराज ने सुरसुन्दरी की प्रार्थना का स्वीकार किया ।
राजा-रानी, सेठ-सेठानी और अमरकुमार-सुरसुन्दरी वगैरह सभी नगर में वापस लौटे । राजा-रानी के ह्रदय भारी बन चुके थे । सेठ-सेठानी का दिल भी भारी हो रहा था । अमरकुमार और सुरसुन्दरी का चारित्र के मार्ग पर चलने का संकल्प सुनकर उनके दिल व्याकुल हो उठे थे ।
सुरसुन्दरी-अमरकुमार भोजन आदि से निपटकर अपने शयनखंड में आये । सुरसुन्दरी ने कहा :
‘स्वामिन, अपने परम पुण्योदय से ही ऐसे अवधिज्ञान गुरुदेव अपन को मिल गये है….। अपन को इस अवसर को सहर्ष बधा लेना चाहिए । पर इससे पूर्व एक महत्वपूर्ण कार्य तात्कालिक करना होगा !’
‘वह क्या ?’ अमरकुमार के मन में आशंका उभरी ।
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