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फिर सपनों के दीप जले – भाग 4

सुरसुन्दरी जहाज में आरूढ़ हो गयी । उसके पीछे श्रेष्ठि भी चढ़ गया।
श्रेष्ठि ने सुरसुन्दरी को , अपने कक्ष से लगे हुए खण्ड को बताकर कहा : ‘यहां तुझे सुविधा रहेगी न ? इस खंड में तेरे अलावा और कोई नहीं रहेगा । यहां सब तरह की सुविधाएं है ।’
खंड छोटा था पर स्वच्छ था , सुन्दर था व सुन्दर ढंग से सजाया हुआ था । सुरसुन्दरी ने कहा :
‘पितातुल्य महानुभाव । इससे छोटा मामूली खंड होगा तो भी मेरे लिये चल जायेगा ।’
‘क्यों ? मेरे जहाज में तुझे किसी भी तरह की कमी महसूस नहीं होनी चाहिए । और तू किसी भी तरह की चिन्ता मत करना । जहाज के सभी आदमियों को मैंने सुचना दे दी है …. वे सब तेरे हर हुक्म का पालन करेंगे ।’
‘आप यह सब कर के मेरे पर उपकार का भार बड़ा रहे है ।’
‘उपकार काहे का इस में ? यह तो मेरा फर्ज है ।’
‘आप सचमुच महापुरुष है ।’ सुरसुन्दरी अपनी कृतज्ञता व्यक्त करते हुए गद गद हो उठी ।
‘अच्छा , ये कपडे तेरे लिये रखे है । गंदे कपड़े निकाल कर ये स्वच्छ कपड़े पहन लेना । स्नान के लिये भी कमरे में ही सुविधा है । फिर अपन साथ साथ भोजन लेंगे।’
सुरसुन्दरी ने सात-सात दिन से अनाज तो खाया नहीं था । केवल फलाहार ही किया था । श्रेष्ठि को भोजन की बात सुनकर उसकी भूख भड़क उठी । जल्दी जल्दी स्नानघर में घुसकर उसने स्नान किया एवं वस्त्र – परिवर्तन करके स्वस्थ होकर बहार निकली ।
थोड़ी ही देर में श्रेष्ठि खुद आकर सुरसुन्दरी को भोजन करने के लिये ले गया। बहुत आदर व आग्रह करके खाना खिलाया और बोला :
‘अब तू निशिचत मन से आराम करना । मैं भी मेरे कमरे में आराम करूंगा । कोई भी काम हो तो मुझे बुला लेना। ‘
सुरसुन्दरी अपने कमरे में आई … कमरे का दरवाजा बंद किया । और पलंग में लेट गयी । भोजन करने के बाद सोने की आदत सुरसुन्दरी को थी नहीं । उसे नींद नहीं आयी । वह सोचने लगी। दिमाग में किनारों का काफिला उतरने लगा :
‘मैं अनजान… यह श्रेष्ठि भी अनजान । फिर भी मेरे पर कितनी दिया की इसने ? मेरी कितनी देखभाल कर रहा है ? अच्छा हुआ जो मुझे ऐसा सुंदर साथ मिल गया … वर्ना । अब तो कुछ ही दीनों में अमरकुमार से मिलना भी हो जायेगा । वो तो मुझे जिन्दा देखकर भड़क उठेगा । नहीं … नहीं …. वो शर्मिन्दा हो जायेगा । हालांकि पीछे से तो उसको अपनी गलती का ख्याल आया ही होगा । गुस्सा उतर जाने के बाद आदमी को अपनी गलती का अहसास होता है अक्सर । पर क्या वह अपनी गलती मानेगा सही ? चाहे न माने । मैं उसे जरा भी कटुवचन नहीं कहूंगी , नहीं ताने कसुंगी । जैसे कुछ हुआ ही नहीं , उस ढंग से ही व्यवहार करूंगी।’

आगे अगली पोस्ट मे…

फिर सपनों के दीप जले – भाग 3
June 7, 2017
फिर सपनों के दीप जले – भाग 5
June 7, 2017

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