‘नाथ ! आप क्षमा न मांगें…. आपको क्षमा मांगने की नही होती है ।’
‘सुन्दरी, मैने तेरा कितना बड़ा विश्वासघात किया है । तेरा अक्षम्य अपराधी हूं… मैने तुझे मौत के द्वीप पर असहाय छोड़ दी… तू मेरे अपराधों को क्षमा कर दे….मै सच्चे दिल से क्षमायाचना करता हूं…। तू सचमुच ही महासती है….। तेरे सतीत्व के बल पर ही तू जिन्दा रही है….। तेरा पुण्यबल प्रकृष्ट है….। मैने तो तुझे दुःख देने में कोई कसर नही छोड़ी…. पर तेरे अनगिनत पूण्य ने तुझे बचा लिया….। तू सूखी बनी….। पर मुझे बता सुर, तूने ये बारह साल कैसे गुजारे ? न जाने कितनी यातनाओं में से तू गुजरी होगी…?
कैसे कैसे कष्ट तेरे पर टूट गिरे होंगे….। मै कल्पना भी नही कर सकता…। यह सब हुआ भी मेरे कारण !’
अमरकुमार का स्वर आँसुओ से सिक्त था ।
रात का तीसरा प्रहर पूरा हो गया था । चौथा प्रहर प्रारंभ हो चुका था । सुरसुन्दरी ने स्वस्थ होकर, यक्षद्वीप से लगाकर एक के पश्चात एक घटनाएं सुनानी चालू की….।
अमरकुमार सुरसुन्दरी की तरफ टकटकी बाधे हुए….. ऊँची सांस से सुन रहा है सब कुछ ! यक्षराज को वंदना करता है मन ही मन…. तो धनंजय और फानहान की पाशविकता पर थूकता है….। चोरपल्ली में प्रगट हुई शासनदेवी की कृपा पर मुग्ध हो उठता है ।
रत्नजटी का मिलन… नंदीश्वर द्वीप की यात्रा…. सुर-संगीतनगर में रत्नजटी और उसकी चार पत्नियों के निर्मल स्नेह की बातें करते करते तो सुरसुन्दरी रो पड़ी। अमरकुमार की आंखे भी गीली हो गई । रत्नजटी की चार पत्नियों के द्वारा दी गयी चार विद्याएं…. बेनातट नगर में आकर धारण किया हुआ पुरुष रूप… धारण किया हुआ ‘विमलयश’ नाम… यह सब सुनकर तो अमरकुमार दंग रह गया ! आश्चर्य से स्तब्ध हो गया !
‘तो क्या विमलयश वह तू ही थी ?’ अमरकुमार कि उत्सुकता पूछ बैठी ।
‘जी हाँ…. स्वामीनाथ ! मै ही विमलयश !’
और गुणमंजरी के साथ कि हुई शादी की बात सुनकर तो अमर-कुमार हंस पड़ा। राज्यप्राप्ति की बात सुनकर प्रफुल्लित हो उठा ।
‘नाथ…. आपका वचन मैने पूरा कर दिया है । सात कोड़ी से राज्य ले लिया है… अब फिर याद मत कराना….!’
‘सचमुच…. श्री नवकार मंत्र का प्रभाव अचिन्त्य है ।’
‘हाँ…. उसी महामंत्र के प्रभाव से सारे दुःख टल गये…. सुख मिले… यश फैला और तुम्हारा मिलन हुआ ।’
‘ये सारे तेरे अपूर्व श्रद्धा एवं सतीत्व के अदभुत चमत्कार है ।’
‘अरिहंत परमात्मा की कृपा है…. पंचपरमेष्टि भगवंतों का अनुग्रह है….. नाथ ! पर…. अब आपको मेरी एक प्रार्थना का स्वीकार करना होगा ।’
‘माननी ही पड़ेगी न हर बात भाई…. महाराजा की बात न मानूं तो अपनी तो खैर ही नही रहेगी !’
आगे अगली पोस्ट मे…