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अपूर्व महामंत्र – भाग 6

ज्यों नक्षत्रों में चन्द्र चमकता है वैसे तमाम पुण्यराशियों में भाव नमस्कार शोभित बनता है । विधिपूर्वक आठ करोड़ , आठ लाख , आठ हजार , आठ सौ आठ बार इस महामंत्र का जाप यदि किया जाय तो करनेवाली आत्मा तीन जन्म में मुक्ति प्राप्त करती है।
अतः हे भाग्यशीले, तुझे मैं कहती हूं कि संसार – सागर में जहाज के समान इस महामंत्र का स्मरण जरूर करना । इसमें आलस नहीं करना । भावनमस्कार तो अवश्य परम तेज है। स्वर्ग एवं अपवर्ग का रास्ता है। दुर्गति को नष्ट। करनेवाला अग्नि है। जो भव्य जीवात्मा अंतिम सांस की घड़ी में इस महामंत्र का पाठ करे…. इसे गिने …. सुने …. इसका ध्यान करे उसे भावीजीवन में कल्याण की परम्पराएँ प्राप्त होती है।
मलयाचल में से निकलते चन्दन की भांति , दही में से निकलते मक्खन की भांति, आगमो के सारभूत और कल्याण के निधि समान इस महामंत्र की आराधना धन्य व्यक्ति ही कर पाते हैं ।
पवित्र शरीर से, पदासनस्थ होकर, हाथ को योगमुद्रा में रखकर, संविग्न मनुष्य होकर, स्पष्ट, गम्भीर, और मधुर स्वर से इस नमस्कार महामंत्र का सम्यक उच्चार करना चाहिए । शारीरिक अस्वस्थता वगैरह के कारण यह विधि यदि न हो सके तो ‘असिआउसा’ इसका जाप करना चाहिए । इस मंत्र का स्मरण भी यदि शक्य न हो तो केवल ‘ॐ’ का स्मरण करना चाहिए। यह ‘ॐ’ कार मोह-हसित को बस में करने के लिये अंकुश के समान है।

आगे अगली पोस्ट मे..

अपूर्व महामंत्र – भाग 5
April 14, 2017
अपूर्व महामंत्र – भाग 7
April 14, 2017

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