ज्यों गरुड़ का स्वर सुनकर चंदन का वुक्ष सर्पो के लिपटाव से बरी हो जाता है, उस तरह नमस्कार महामंत्र की गम्भीर ध्वनि सुनकर मनुष्य के पापबंधन टूट जाते है। महामंत्र में एकमना जीवों के लिये जल-स्थल श्मशान – पर्वत – दुर्ग वगैरह उपर्दव के स्थान भी उत्सवरूप बन जाते है।
विधिपूर्वक पंचपरमेष्टि-नमस्कार मंत्र का ध्यान करने वाले जीव तिर्यंच गति या नरक गति का शिकार नहीं बनते। इस महामंत्र के प्रभाव से बलदेव, वासुदेव , चकवर्ती की ऋद्धि प्राप्त होती है। विधिपूर्वक पठित यह मंत्र वशीकरण, स्तंभन आदि कार्यो में सिद्धि देनेवाला होता है। विधिपूर्वक स्मरण किया जाये तो यह महामंत्र परविद्या को काट डालता है और क्षुद्र देवों के उपद्रवों का ध्वंस करता है।
स्वर्ग, मुत्यु और पाताल इन तीनों लोक में, द्रव्य – क्षेत्र – काल और भाव की अपेक्षा से जो कुछ आश्चर्यजनक अतिशय दिखायी देता है वो सब इस नमस्कार महामंत्र की आराधना का ही प्रभाव है, यों समझना । नमस्कार रूपी महारथ पर आरूढ़ होकर ही अभी तक तमाम आत्माओंने परम पद की प्राप्ति की है, यों जानना।
जो मन-वचन-काया की शुद्धि रखते हुए एक लाख नवकार मंत्र का जाप करते है वे तीर्थंकर नाम कर्म का उपार्जन करते हैं।
ऐसे नमस्कार महामंत्र के ध्यान में यदि मन लीन-तल्लीन नहीं बनता है तो फिर लम्बे समय तक किये हुए क्षुतज्ञान या चारित्र धर्म का पालन भी क्या काम का ? जो अनन्त दुःखो का क्षय करता है, जो इस लोक और परलोक में सुख देने वाली कामधेनु है- कल्पवुक्ष है… उस मंत्राधिराज का जाप क्यों नहीं करना? दिये से, सूरज से या अन्य किसी तेज से जिस अंधेरे का नाश नहीं होता उसका नाश नमस्कार महामंत्र से होता है।
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