केवलज्ञानी मुनिराज ने संसार को यथातथा का स्वरूप दर्शन करवाया । आत्मा की स्वभावदशा का वर्णन किया, मोक्षमार्ग का ज्ञान दिया ।
अक्षयकुमार ने अपने पिता मुनिराज को सुवर्ण-कमल पर आरूढ़ हुए देखे… उनकी अमृत वाणी सुनी । उसे परम् आहलाद प्राप्त हुआ । उसका मन तृप्त बन गया।
गुणमंजरी ने देशना पूर्ण होने के पश्चात खड़े होकर विनंती की :
‘गुरुदेव, चंपानगरी को पावन कीजिये, मेरा भवसागर से उद्धार करो गुरुदेव ! कृपावंत, इस संसार का बाकी रहा हुआ एक कर्तव्य अब पूरा हो चुका है… आप अब मेरे पर कृपा करें ।’
‘अब तेरा समय परिपक्व हो चुका है, तेरे अधिकांश कर्म नष्ट हो अति शीघ्र चारित्रधर्म की प्राप्ति होगी ।’
सभी के मन प्रफुल्लित हुए । सभी चंपानगरी में आये । महाराजा रिपुमर्दन ने ककंदीनरेश की राजकुमारी के साथ युवराज अक्षयकुमार की शादी कर के शुभ मुहूर्त में राजसिंहासन पर उसका राज्यभिषेक कर दिया । केवलज्ञानी अमर मुनिराज और केवलज्ञानी साध्वीजी सुरसुन्दरी चंपानगरी के बाह्य उपवन में पधारे । हजारों श्रमण-श्रमणीयो से उपवन भर गया ।
चंपानगरी में आनंद का सागर उछलने लगा । हजारों प्रजाजन केवलज्ञानी के दर्शन करने के लिये और उपदेश सुनने के लिये दौड़े ।
चंपानगरी में ढिंढोरा पीटने लगा :
‘महाराजा और महारानी चारित्र ग्रहण करेंगे ।’
‘धनावह श्रेष्ठि और धनवती सेठानी भी चारित्र ग्रहण करेंगे ।’
‘गुणमंजरी भी चारित्र अंगीकार करेगी ।’
राजा अक्षयकुमार माता गुणमंजरी की गोद मे सर रखकर फफक पड़ा….रो रो कर उसकी आंखें सूज गई । गुणमंजरी ने बड़े वात्सल्य से उसे आश्वासन दिया और कहा :
‘वत्स… एक दिन तुझे भी इसी त्याग के मार्ग पर आना है । प्रजा का पालन नीतिपूर्वक करना…. परमात्मा की शरण मे रहना ।’
प्रित किये दुख होय
दीक्षा का दिन आ गया था ।
भव्यातिभव्य….. शानदार शोभायात्रा निकली….
केवलज्ञानी महामुनि के हाथों राजा-रानी, सेठ-सेठानी और गुणमंजरी की दीक्षा हुई । रतिसुन्दरी, धनवती, गुणमंजरी ने केवलज्ञानी सुरसुन्दरी साध्वी की शरण अंगीकार की । राजा रिपुमर्दन औऱ सेठ धनावह ने अमरमुनि के चरणों मे जीवन समर्पित किया ।
राजा अक्षयकुमार ने राजपरिवार के साथ सभी को वंदना की और म्लानवदन… आँसुभरी आंखों से वापस नगर में लौटा ।
समय के बीतने के साथ अमरमुनिराज ने अघाती कर्मो का भी नाश किया । उनकी आत्मा सिद्ध-बुद्ध-मुक्त हो गई । संदेह आत्मा विदेह हो गई । परम् सुख और परमानंद का भोक्ता बन गई ।
इसी तरह साध्वी सुरसुन्दरी के भी शेष कर्म नष्ट हुए । उन्होंने भी मोक्षदशा को प्राप्त कीया । अक्षयसुख और अनंत आनंद के भोक्ता बन गये ।
श्री नमस्कार महामंत्र के अचिंत्य प्रभाव का बयान करने वाली यह महाकथा सभी मनुष्यो के तमाम दूरिन्तो का नाश करने वाली बनो…! सभी आत्माओं के क्लेश-संताप दूर हो जाये…. सभी आत्माएं परमानंद को प्राप्त करें…! ! !
।।।सम्माप्त।।।