रत्नजटी ने गुणमंजरी को कीमती वस्त्रालंकार भेंट किये । अक्षयकुमार के लिए भी अनेक सुंदर वस्रालंकार और खिलौने दिये । सभी की अश्रुपूरित विदा लेकर वह अपनी रानियों के साथ अपने नगर में चला गया ।
महाराजा गुणपाल ने बेनातट नगर जाने के लिये धनावह श्रेष्ठी की इजाजत मांगी । वे बेनातट नगर चले गये ।
धनवती अपने ह्रदय पर पत्थर रखकर विरह की व्यथा के घूंट पीती हुई गुणमंजरी के तन मन का खयाल करने लगी । गुणमंजरी ने सुंदर कपड़े पहनने छोड़ दिये…. अलंकार छोड़ दिये । एक साध्वी जैसा जीवन जीने लगी । धनवती के साथ वह भी अनेक प्रकार की धर्मआराधना में अपना दिल पिरौती रही । रानी रातिसुन्दरी भी गुणमंजरी को अपनी बेटी की भांति सम्हालने लगी ।
बरस गुजरते है ।
समय का बहाव कितना तेज रहता हैं !
अक्षयकुमार भी तरुण हो गया । कलाचार्यो के पास अनेक प्रकार की कलाएं सीखता है। गुणमंजरी पूरी देखभाल रखती हैं उसकी । पुत्र के जीवन में किसी भी तरह का दूषण प्रविष्ट न हो इसके लिए वह पूरी सावधनी रखती है, खयाल करती है !
रोजाना अपने पुत्र को पास में बिठाकर सुंदर प्रेरणा भरी कहानियां सुनाती है । अमरकुमार और सुरसुन्दरी की की बातें करती है…. कभी अक्षयकुमार जिद पकड़ लेता है…. ‘मा, चल ना… अपन पिताजी कर पास चलें….।’ तब गुणमंजरी उसे कहती : बेटा, तेरे पिताजी जब यहां आयेंगे तब उनके पास जायेंगे ।’
कभी गुणमंजरी रात रात भर अमरकुमार और सुरसुन्दरी की यादों में खोई हुई जागती रहती है….। आंसू बहाती है… श्री नवकार महामंत्र का स्मरण करती है। उसने प्रतिदिन 108 नवकार मंत्र का जाप करने की प्रतिज्ञा ले रखी है ।
वह मिष्टान्न नही खाती है…। न बालों का सिंगार सजाती है… पान सुपारी नही लेती है… जब जब मन अस्वस्थ होता है… तब ग्रह-मंदिर में जाकर परमात्मा की स्तवना करती है….। परमात्मा के ध्यान में लीन बनती है… कभी धनवती के साथ उपाश्रय में जाकर साध्वीजी का सत्संग करती है । कभी रतिसुन्दरी के पास में जाकर तत्वचर्चा करती है….।
समय का प्रवाह बहता ही जाता है । समय को कौन रोक सकता है ? अक्षयकुमार ने यौवन में प्रवेश कर दिया था ।
आगे अगली पोस्ट मे…