सुरसुन्दरी बेहोश हो गयी थी । उसके सर के पिछले हिस्से में से खून आ रहा था । फानहान ने तुरन्त चोट लगे भाग को घो कर पट्टी लगा दी । ठंडे पानी के छींटे दे दे कर सुरसुन्दरी को होश में लायी ।
किनारे पर सैकड़ों नगरवासी इकट्ठे हो गये थे । फानहान ने इशारे से लोगों को समझा दिया कि ‘यह औरत बच गयी है …. अब वो होश में है ।’ लोग नगर में वापस लौट गये अपने अपने घर ।
फानहान ने सुरसुन्दरी को नये कपड़े देकर कहा : ‘पहले तू कपड़े बदल ले ।’ सुरसुन्दरी जहाज के एक कमरे में जाकर कपड़े बदल आयी । उसका पूरा शरीर चोट के मारे दर्द कर रहा था । फानहान ने परिचारिका के साथ गरम दूध भेजा । सुरसुन्दरी ने दूध पी लिया और वहीं जमीन पर सो गयी। एक प्रहर बीता । उसकी नींद खुली ।
फानहान ने कमरे में प्रवेश किया । उसके पीछे ही परिचारिका ने प्रवेश किया , भोजन का थाल हाथ में लेकर ।
‘सुन्दरी , तू यह भोजन कर ले ।’ फानहान सुरसुन्दरी के अदभुत रूप से मुग्ध हुआ जा रहा था । उसने तो सुरसुन्दरी के सौन्दर्य को देखकर ही सुन्दरी कहकर बुलाया था । पर सुरसुन्दरी को अनजान युवान व्यापारी के मुँह से अपना नाम सुनकर आश्चर्य हुआ ।
‘तुम्हें मेरा नाम कैसे मालूम हुआ ? मैंने तो तुम्हें अपना नाम बताया नहीं है ।’
‘अरे वाह । क्या लाजवाब सवाल है तेरा । तेरी यह हर सी खूबसूरती ही तेरा नाम जो बता रही है … सुन्दरी।’
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