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कथा योशोदा कि व्यथा नारी की भाग 14
वर्धमान : ” यशोदा ! मेरी इच्छा थी कि एकबार तू और प्रिया मुझे मिलने के लिए आजाए! मुझे कई बाते करनी ही थी !” यशोदा ! मेरा मार्ग अभी बदल गया है ! माता पिता का देहांत होने से मेरी प्रतिज्ञा पूरी हो गई है ! में बड़े भाई के आग्रह से अभी दो वर्ष मुनि के जैसे यहाँ…
कथा योशोदा कि व्यथा नारी की भाग 13
राजमहल के नजदीक में ही कुमार वर्धमान एक अलायदे भवन में रुके हुए थे। दो वर्ष संसार में रहकर भी संपूर्णतः मुनि जैसा जीवन जीनेवाले थे। इसलिए ही यशोदा प्रियदर्शना को लेकर वर्धमान को मिलने चली तो सही, परन्तु मन में शंका का कीड़ा खदबदने लगा। मुनि तो स्त्री के सामने आँखे भी ऊंची नहीं करते, तो क्या वर्धमान मूझे…
कथा योशोदा कि व्यथा नारी की भाग 12
यशोदा- प्रिया ! जो बात मुझे बरसो से समझ में नहीं आती थी , वह बात आज समझ में आ गई! मुझे सतत विचार आते कि ये संसार के खाने, पीने, फिरने के सुख कितने सोहवने हैं? मै तो इन सुखो के पीछे पागल हूँ , परन्तु स्वामी को क्यों इनमे कोई रूचि नही होती? वे क्यों अत्युदास ही रहते…
कथा योशोदा कि व्यथा नारी की भाग 11
अचानक से यशोदा को विचार आया की आज प्रिया को लेकर स्वामी को मिलने जाना है। परन्तु प्रिया को इस रीत से उसके बापुजी के दर्शन कभी भी नहीं हुए होंगे। वह त्वरीत ही अंदर गई। शय्या से सोई हुई प्रिया को उठाया, प्रिया! “जल्दी उठ! एक अदभुत दृश्य बताती हुँ”। माता के वचनो को सुनकर प्रिया तुरन्त बैठ गई!…
कथा योशोदा कि व्यथा नारी की भाग 10
वह थी मार्गशीष शुक्ला तेरस की रात्री। ऐसी भी क्षत्रिकुड हिमालय के पास होने से ठंडी बहुत पडती थी। यशोदा ने सोते समय ही प्रियदर्शना को रत्नकम्बल ओढा दिया था। राजकुलो में सामान्य से सवा लाख रूपये की किंमत की वजन मे हलकी, ठंडी गरमी दोनो को रोकने के स्वभाव वाली रत्नकम्बलो का उपयोग होता था। यशोदा भी यही रत्नकंबल…