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अग्निशर्मा तपोवन में! – भाग 9
तपोवन से ज्यादा दूर नही… ज्यादा नजदीक भी नही….’वसंतपुर’ नाम का नगर था । वसंतपुर के नागरिकों के लिए ‘सुपरितोष’ तपोवन सुपरिचित था । नगर में तपोवन के कुलपति आर्य कौडिन्य के प्रति बहुत श्रद्धा थी । नगर पर आर्य कौडिन्य का अच्छा-खासा प्रभाव था । उसके स्वरूप वसंतपुर के इर्दगिर्द के जंगलों में किसी भी वन्यप्राणी की हिंसा नही…
अग्निशर्मा तपोवन में! – भाग 8
‘प्रभो, आपके कहे अनुसार तपोवन के पूर्वभाग में आम्रवृक्ष के तले पत्थर की चट्टान पर मै बैठूंगा । पारणे के दिन ही वहां से खड़ा होऊंगा ।’ ‘तेरे लिए पूर्ण रूपेण उपयुक्त है वह स्थान ।’ वार्तालाप सुन रहे तापसौ को संबोधित करते हुए कुलपति आर्य कौडिन्य ने कहा : ‘तपोवन के तपस्वीजन ! अब तुम सब को बराबर सावध…
अग्निशर्मा तपोवन में! – भाग 7
‘वत्स, तूने जीवन का मोह तो छोड़ ही दिया है । अब तुझे भीतरी भावनाओं एवं कामनाओं पर विजय प्राप्त करना है। ज्यो ज्यो तेरी तपश्चर्या की बात गांव- गांव और नगरों में फैलेगी…. त्यों त्यों गुणानुरागी लोग तेरी प्रशंसा करेंगे… तेरा गुणगान करेंगे… तेरे दर्शन के लिए आयेंगे। तेरे दर्शन करके अपने आप को धन्य मानेंगे । उस समय…
अग्निशर्मा तपोवन में! – भाग 6
अग्निशर्मा को तपोवन का वातावरण पसंद आ गया । दिल मे बस गया । कुछ डर नही…. कोई पीड़ा नही ! कोई अपमान नही…. कोई तिरस्कार नही ! तापसो के मृदु और मधुर वचन, कुलपति का अपार वात्सलय, परस्पर का उत्कृष्ट मैत्रीभाव… धार्मिक और आध्यत्मिक वातावरण, निसर्ग का मोहक सौन्दर्य…. परमार्थ और परोपकार की भावनाएं ! ‘सुपरितोष’ नामक यह तपोवन…
अग्निशर्मा तपोवन में! – भाग 5
अग्निशर्मा ने चिन्तित होकर पुछा- ‘पर गुरुदेव, इस तपोवन में कई तापस रहते होंगें, क्या वे मेरा पराभव नही करेंगे ? वे मेरा मजाक नही उड़ाएँगे ?’ ‘वत्स, इस तपोवन में रहनेवाले सभी तापस अपनी ऊनी उपासना-आराधना के रत हैं । किसी भी जीव को पीड़ा पहुँचे वैसा आचरण वे कभी नही करते है । दूसरे जीवों के दिल का…