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राजकुमार का पश्चाताप – भाग 5
‘महाराजा, कुमार और उनके मित्रो ने अपनी आज्ञा के उल्लंघन किया है । कल उस ब्राह्मणपुत्र को उन्होंने बुरी तरह घायल कर के नगर के बाहर जीर्ण मंदिर के चबूतरे पर फेंक दिया था ।’ ‘नगर श्रेष्ठि और महाजन, कल की घटना के बारे में मुझे कुछ भी पता नही है….। आप कहते है…. तो बात सत्य हो होगी ।’…
राजकुमार का पश्चाताप – भाग 4
एक-दो या दस-बारह रथ नही, पर पूरे एक सौ आठ रथ राजमहल के विशाल मैदान में पहुँच कर खड़े रहे । नगरश्रेष्ठि के पीछे धीर-गंभीर और प्रतिष्टित महाजन महल के सोपान चढ़ने लगे । राजमार्ग पर से महाजन के एक सौ आठ रथो को एक साथ राजमहल की और जाते हुए देखकर , नगरवासी लोग अनेक तरह के तर्क-वितर्क करने…
राजकुमार का पश्चाताप – भाग 3
यज्ञदत्त ने स्वागत वचन कहे और द्विजश्रेष्ठ को बैठने के लिए काष्टसन दिया । द्विजश्रेष्ठ ने कहा : ‘महानुभाव, हम नगर के श्रेष्ठ के पास जाकर सारी बात करे ।’ यज्ञदत्त के साथ द्विजश्रेष्ठ नगरशेठ की हवेली पर आये । नगरश्रेष्ठि प्रभातिक कार्यो से निवर्त्त होकर बैठे हुए थे । उन्होंने दोनो ब्राह्मणों का उचित स्वागत किया । और सेवक…
राजकुमार का पश्चाताप – भाग 2
वयोवृद्ध द्विजश्रेष्ठ भी पूजा-पाठ में बैठने की तैयारी ही कर रहे थे, इतने में उन्होंने सोमदेवा को घर मे प्रवेश करते हुए देखा, उन्होंने पूछा : ‘बेटी, तुझे और तेरे पुत्र को कुशल है ना ?’ ‘पूज्य, आज हम दोनों जब ब्रह्ममुहूर्त में जगे तब अग्नि का बिछौना खाली था। अग्नि का कहीं पता नहीं था । हमने घर मे…
राजकुमार का पश्चाताप – भाग 1
ब्रह्मा मुहूर्त में यज्ञदत्त ने निद्रा का त्याग किया । सोमदेवा भी जग गई । जगने के साथ उसकी दृष्टि अग्निशर्मा के बिछौने पर गई । अग्निशर्मा को बिछौने में न देखकर वह चौक पड़ी : ‘अरे, अग्नि कहां गया अकेले !’ ‘मै भी अभी ही जगा हूं । देखता हूं…. शायद पीछे बाड़े में गया हो ।’ यज्ञदत्त परमात्मा…