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काश ! मैं राजकुमारी न होती – भाग 5

‘अच्छा ? मैं तो तैयार हूं ! पर कब और कहां ?’ ‘दो चार दिन में ही और राजसभा में ।’ ‘ठीक है, मैं आज पिताजी से मिलूंगी !’ ‘आज तू उपाश्रय गई तब बाद में तेरे पिताजी ने धनावह श्रेष्ठि को यहां राजमहल में बुलवाया था ।’ ‘क्यों ?’ यह तो मैं नहीं जानती …. पर उन्होंने कल सेठ…

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काश ! मैं राजकुमारी न होती – भाग 4

अमरकुमार व सुरसुन्दरी ने अहोभाव जताते हुए आचार्यदेव की प्ररेणा सुनी । उसे स्वीकार किया । पुनः वंदना की …. कुशलता पूछी और बिदा ली । दोनों उपाश्रय के बाहर निकले । अमरकुमार ने सुरसुन्दरी से पूछा : ‘तुझे मालूम है … राजसभा में अपनी परीक्षा होने वाली है ?’ ‘नहीं तो …. किसने कहा ? मुझे तो तनिक भी…

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काश ! मैं राजकुमारी न होती – भाग 3

देवत्व आत्मा का ही एक पर्याय है । पशुत्व और नारकत्व भी आत्मा के पर्याय ही हैं । पर्याय को अवस्था भी कह सकते हैं। बाल्यावस्था बीती और युवावस्था का जन्म हुआ । निरोगी अवस्था नष्ट हुई और रोगी अवस्था पैदा हुई । धनवान – अवस्था नष्ट हुई … गरीबी का जन्म हुआ । यों अवस्थाएं बदलती रहती हैं ….…

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काश ! मैं राजकुमारी न होती – भाग 2

‘गुण द्रव्य के सहभावी होते हैं, जबकि पर्याय क्रमभावी होते हैं । गुण द्रव्य में ही रहे हुए होते हैं, जबकि पर्याय में उतपति और विनाश का क्रम चलता ही रहता है । इस तरह हर एक द्रव्य अनन्त धममित्क होता है । परस्पर विरोधी दिखने वाले पर्याय – गुण भी एक द्रव्य में होते हैं… हालांकि , उनकी अपनी…

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काश ! मैं राजकुमारी न होती – भाग 1

सुबह का प्रथम प्रहर बीत चुका था । सुरसुन्दरी प्राभातिक कार्यों से निवुत्त होकर, उपाश्रय में जाने की तैयारी करने लगी । दासी को भेजकर रथ तैयार करवाया और माता की इजाजत लेकर , रथ में बैठकर वह उपाश्रय पहुँची । विधिपूर्वक उसने उपाश्रय में प्रवेश किया । ‘मत्थएण वंदामि’ कहकर मस्तक पर अंजलि जोड़कर आचार्य श्री को प्रणाम करके…

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