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संयम राह चले सो शूर ! – भाग 6
इधर गुरुदेव ने महाव्रतों का आरोपण कर के, उन दोनों नवदीक्षितो को लक्ष्य कर के कहा: पुण्यशाली, आज तुम भवसागर को तैरने के लिये संयम की नैया में बैठ गये हो । तुम्हे क्रोध-मान-माया ओर लोभ पर विजय प्राप्त करना है । तुम्हे तुम्हारे मन-वचन-काया को शुद्ध रखना है । इसके लिये पाँच इंद्रियों को वश में रखनी है ।…
संयम राह चले सो शूर ! – भाग 5
वसंत पंचमी ! दीक्षा का शुभ मुहूर्त का दिन ! चंपानगरी में दिव्य श्रृंगार सजे थे…. नगरी के राज मार्ग पर कीमती मोतियों के तोरण लटकाये गये थे । सुगंध भरपूर पानी का छिटकाव किया गया था । हजारों रथ, हाथी और घोड़ो को सजाये सवारे गये थे । विद्याधरों के वाजिन्त्रो ने वातावरण को प्रसन्न्ता से भर दिया था…
संयम राह चले सो शूर ! – भाग 4
सुरसुन्दरी ने सर्वप्रथम अमरकुमार का परिचय करवाया इसके बाद गुणमंजरी…. माता-पिता… धनावह सेठ… धनवती सभी का परिचय करवाया । महाराजा रिपुमर्दन ने नगर में पधारने के लिये रत्नजटी से विनती की । काफी जोर शोर से रत्नजटी के परिवार का स्वागत किया । रत्नजटी ने राजमहल में पहुँच कर राजा रिपुमर्दन और श्रेष्ठि धनावह से विनती की: ‘हे पूज्यवर, इन…
संयम राह चले सो शूर ! – भाग 3
महाराजा रिपुमर्दन ने कहा : ‘बेटी, तू’तो वैसे भी संसार में रही हुई भी साध्वी जीवन ही गुजार रही हैं । संसार में रहकर भी तू’तेरी इच्छा के अनुसार धर्माआराधना कर सकती हैं, पर दीक्षा की बात तू’ जाने दे…. मेरी बात मान ले बेटी….।’ ‘पिताजी, संसार के तमाम सुखों के प्रति मेरा मन विरक्त हो गया है। अब किस…
संयम राह चले सो शूर ! – भाग 2
‘महाराजा, मै चंपानगरी से श्रेष्ठि धनावह का संदेश लेकर आया हूं ।’ ‘कहो, श्रेष्ठि धनावह और अमरकुमार कुशल तो है ना ?’ ‘जी हां, वे सब कुशल है, और आपको कहलाया है अमरकुमार और उनकी धर्मपत्नी सुरसुन्दरी, इस संसार का परित्याग करके चारित्रधर्म अंगीकार करने के लिये तत्पर बने हैं। दीक्षामहोत्सव में आपको परिवार के साथ पधारने की विनती है…