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किये करम ना छूटे – भाग 6
दूसरे दिन सवेरे अमरकुमार और सुरसुन्दरी गुरुदेव के दर्शन-वंदन करने गये, तब वहां पर उन्होंने गुरुदेव के समक्ष कुछ तेजस्वी स्त्री-पुरुषों को धर्मोपदेश श्रवण करते हुए देखे । वे दोनों भी वहां बैठ गये । उपदेश पूर्ण होने के पश्चात मुनिराज ने कहा : ‘सुरसुन्दरी, ये विद्याधर स्त्री-पुरुष है । वैताढ़य पर्वत पर से यहां दर्शन के लिये आये…
किये करम ना छूटे – भाग 5
एक महत्वपूर्ण कार्य तात्कालिक करना होगा सुरसुन्दरी ने कहा। ‘वह क्या ?’ अमरकुमार के मन में आशंका उभरी । गुणमंजरी को शीघ्र बुला लेना चाहिए । उसके मन का पूरा समाधान करके ही अपन संयम राह पर चलेंगे ।’ ‘मैने मृत्युंजय को बेनातट भेजा ही है । दो-चार दिन में ही वह गुणमंजरी को लेकर लौटना ही चाहिए ।’ ‘तब…
किये करम ना छूटे – भाग 4
महामुनि ने पूर्वजन्म की कहानी पूरी की । अमरकुमार और सुरसुन्दरी उस कथा के दृश्यों को अपने मानसपट पर चित्रांकन की भांति उभरते देखने लगे । दोनों को जाति–स्मरण ज्ञान प्रगट हो गया था । पूर्वजन्म की जो जो बातें बतायी थी वे सारी बातें स्मृति पथ में उभर आई । दोनों की आंखे खुशी के आँसुओ से भर आईं…
किये करम ना छूटे – भाग 3
समता के सागर महामुनि ने राजा-रानी को धर्म का उपदेश दिया : ‘राजन, इस मनुष्यजीवन को सफल बनाने के लिये चार प्रकार के धर्म का आचरण करना चाहिए : सुपात्र को दान देना चाहिए, शील धर्म का पालन करना चाहिए, विविध प्रकार की तपश्चयाए करनी चाहिए और शुभ भावनाओं से भावित बनना चाहिए । इस चतुर्विद धर्म की आराधना करते…
किये करम ना छूटे – भाग 2
‘स्वामिन आपकी बात सच है । मुनि एकाग्रचित होकर ध्यान कर रहे है…. पर इन्हें विचलित करने का कार्य हमारे लिये सरल होता है ! रूपवती को देखकर बड़े बड़े जोगी-जात और साधु सन्यासी भी चंचल हो जाते है । कितने ही उदारण मिलते है !’ ‘देवी, चंचल और चलित हो जाने वाले वे जोगी-जति और होंगे ! ये…