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सहचिंतन की उर्जा। – भाग 5
श्रेष्ठि धनावह और सेठानी धनवती भी सुन्दर वस्त्राभूषण सज कर गुरुवंदन के लिये जाने को तैयार हुए । ज्यों ज्यों नगर में ढिंढोरा पीटता गया त्यों त्यों हजारों स्त्री – पुरुष ज्ञानधर महामुनि के दर्शन – वंदन करने के लिये नगर के बाहर जाने लगे । नगर में आनन्द और उल्लास का वातावरण फैल गया । बाहरी उघान – उपवन…
सहचिंतन की उर्जा। – भाग 4
ह्रदय में वैराग्य के रतनदीप को जलता हुआ रखकर सुरसुन्दरी संसार के सुखभोग में जी रही है । पाँचो इन्द्रियों के वैषयिक सुख भोगती है । अमरकुमार के दिल में भी वैराग्य का दिया जल उठा है । वह दिया बुझा नहीं है…। संसार के कर्तव्यों का पालन करते जा रहे है । धर्मशासन की प्रभावना के भी अनेक कार्य…
सहचिंतन की उर्जा। – भाग 3
‘गुणमंजरी को आपके प्रति अगाध प्रेम है , आपके चरणों में पूर्णतया समर्पित वह महासती नारी है ।’ ‘सही बात है तेरी , पर मेरे दिल की स्तिथि अलग है… मैं उसके बिना जी सकता हूं, ऐसा मैं महसूसता हूं… पर तेरे बिना जीना… किसी भी हालात में संभव नहीं… ऐसा मुझे लगता है । इसलिये यदि चारित्रधर्म को अंगीकार…
सहचिंतन की उर्जा। – भाग 2
जिनाज्ञा का संपूर्ण पालन चारित्र जीवन में ही शक्य है …. निर्ग्रन्थ जीवन में ही पूर्णतया पालन हो सकता है…।’ ‘चारित्रजीवन सरल नहीं है … बड़ा दुष्कर है … बड़ा कठिन होता है वह जीवन । ।’ ‘फिर भी वह जीवन जीना अशक्य या असंभव तो नहीं है ना ? हजारों स्त्री – पुरुष वैसा जीवन जी रहे है ना…?…
सहचिंतन की उर्जा। – भाग 1
‘आज सुबह में श्री नवकार मन्त्र का ध्यान पूर्ण होने के पश्चात स्वाभाविकतया आत्मचिंतन प्रारंभ हो गया है ।आत्मा का अंनत भूतकाल …. असीम भविष्य …. जन्म … मुत्यु … जीवन इन सब पर विचार चले आ ही रहे है …।’ ‘ये तेरे विचार आजकल के कहां है…? बरसों के है । तू बरसों तक ऐसे विचार करती रही है…