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बिदाई की घड़ी आई । – भाग 3
सुरसुन्दरी ने पीछे से आकर मृदु-मधुरस्वर स्वर में पूछा । अमरकुमार सुरसुन्दरी के सामने देखता ही रहा । ‘कह दो ना । जो भी मन मे आया हो…. कह दो’ सुरसुन्दरी का स्वर स्नेह से आप्लावित था । ‘तू गुणमंजरी के साथ मेरी शादी करवा कर, इस संसार का त्याग करने का विचार तो नही कर रही है ना ?’…
बिदाई की घड़ी आई । – भाग 2
महाराजा गुणपाल मंत्रणाग्रह में बैठे हुए थे । अमरकुमार और सुरसुन्दरी ने जाकर प्रणाम किये । महाराजा ने बड़े स्नेह से दोनों का अभिवादन किया । ‘आओ…. आओ… मै तुम दोनों की प्रतीक्षा ही कर रहा था !’ अमरकुमार के सामने देखते हुए महाराजा ने कहा : ‘कुमार, तुम्हे तो सुरसुन्दरी मिल गई…. पर हमारा तो विमलयश खो गया….…
बिदाई की घड़ी आई । – भाग 1
बिदाई की घड़ी आई । बेनातट नगर में उदघोषित हो गया कि : ‘विमलयश पुरुष नही है… स्त्री है ।’ ‘सार्थवाह अमरकुमार ने चोरी नहीं की है ।’ ‘विमलयश का असली नाम सुरसुनादरी है ।’ ‘अमरकुमार सुरसुन्दरी के पति है ।’ ‘अमरकुमार को चोंकाने के लिए ही विमलयश ने ‘चोर’ का झूठा इलजाम लगाकर पकड़वाया था ।’ ‘अमरकुमार चंपानागरी के…