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एक अस्तित्व की अनुभूति – भाग 5
‘तुमने कितनी भयंकर यातनाएं उठाई है…! पिताजी ने सारी बातें की हैं….। मै तो सुनकर चौक ही उठी हूँ….। ओह, नवकार मंत्र की महिमा कितनी अगम-अगोचर है….। तुम्हारे सतीत्व का प्रभाव ही अदभुत है…. सचमुच तुम महासती हो !’ गुणमंजरी एक ही सांस में सब बोल गई । महाराजा ने गुणमंजरी से कहा : ‘बेटी, तेरी शादी अमरकुमार के साथ…
एक अस्तित्व की अनुभूति – भाग 4
महाराजा गुणपाल तो सुरसुन्दरी की जीवन कहानी सुनकर स्तब्ध हो उठे । ‘सुरसुन्दरी…. बेटी, श्री नवकार मंत्र का प्रभाव तो अदभुत है ही… पर तेरा सतीत्व कितना महान है ! उस सतीत्व के प्रभाव से ही तेरे सारे दुःख दूर हुए…. सुख आये…. राज्य मिला ।’ ‘महाराजा, उस सतीत्व की सुरक्षा नवकार मंत्र के प्रभाव से ही हो पायी !…
एक अस्तित्व की अनुभूति – भाग 3
विमलयश ने महाराजा को प्रणाम किये और उसके समीप में बैठ गया । ‘उस परदेशी सार्थवाह की बात तो मुझे गुणमंजरी ने की ! चोर निकला साहूकार के भेष में !’ ‘महाराजा, मै उसी विषय में आप से बात करने आया हूं ।’ ‘कहो…. और क्या विशेष समाचार है उस चोर के बारे में ?’ ‘वह सचमुच चोर नही है…।…
एक अस्तित्व की अनुभूति – भाग 2
‘नाथ… मै मेरे गुनाहों की माफी चाहती हूं । मैने आप पर चोरी का आरोप रखा…आपको सताये.. मेरे पैरों में आप से घी घिसवाया…. आप मेरे इन अपराधों को भुला दोगे ना ?’ ‘नही रे… बचपन का तेरा छोटा सा अपराध बरसो तक नही भुला सका, तब फिर ये सारे अपराध कैसे भुला दूंगा ? वापस तेरा त्याग करके चला…
एक अस्तित्व की अनुभूति – भाग 1
‘नाथ ! आप क्षमा न मांगें…. आपको क्षमा मांगने की नही होती है ।’ ‘सुन्दरी, मैने तेरा कितना बड़ा विश्वासघात किया है । तेरा अक्षम्य अपराधी हूं… मैने तुझे मौत के द्वीप पर असहाय छोड़ दी… तू मेरे अपराधों को क्षमा कर दे….मै सच्चे दिल से क्षमायाचना करता हूं…। तू सचमुच ही महासती है….। तेरे सतीत्व के बल पर ही…