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प्रीत न करियो कोय – भाग 6
तो क्या आज ही चली जाऊगी क्या ? अरे… मेरी इन प्यारी प्यारी भाभियो को छोड़कर जाने को दिल ही नही करता है। जी करता है… यही रह जाऊँ… ससुराल जाना ही नही है। नही, दीदी, नही ससुराल तो जान ही चाहिए। यह तो तुम्हारे भाई ने हमसे कहा कि बहन अब कुछ ही दिन रहने वाली है.. जितना प्यार-दुलार…
प्रीत न करियो कोय – भाग 5
सुरसुन्दरी को अब यह भी तस्सली हो गयी कि रत्नजटी सचमुच ही अब उसे कुछ ही दिनों में बेनातट नगर में पहुँचा देगा। ऐसे स्नेह-सलिल से छल छल सरोवर से परिवार को छोड़कर मुझे जाना होगा ? इस विचार ने उसे कंपकंपा दिया। हा… वैसे भी अब मुझे जाना ही चाहिए। अमर मिले इससे पहले ही मुझे उसका सौंपा हुआ…
प्रीत न करियो कोय – भाग 4
और सुंदरी ने आगे जोडते हुये कहा, तुम्हे परिवारिक अनुकूलता भी कितनी सहज मिल गई हैं ! मेरी चारों भाभियां कितनी सुशील, संस्कारी एवं गुणो के झरने के जैसी है। जो तुम्हारी इच्छा वो उनकी चाह। जो तुम्हारा इशारा वह उनका जीवन। मैने तो इन महीनों में खुद अपनी नज़रो से देखा है …परखा है…ये चारों रानियां जैसे कि केवल…
प्रीत न करियो कोय – भाग 3
रत्नजटी ने पुछा चंचल,अस्थिर मन क्या शुद्ध आत्मस्वरूप के चिंतन में स्थिर हो सकता हैं ?’ ‘अवश्य हो सकता है हमेशा उस दिशा में करते रहने से एक न एक दिन सफलता ज़रूर मिलती हैं। मन की चंचलता, मन की अस्थिरता पैदा होती हैं,ममत्व से न ? पर पदर्थों पर ममत्व को भटकने के लिये अन्यत्व भावना कितनी अचूक हैं…उससे…
प्रीत न करियो कोय – भाग 2
‘पर क्यो अभी से ऐसी कल्पना कर रहे हो ? क्या आज ही मुझे भेज देना है ? सुन्दरी ने पुछा ”नही …नही …अभी तो कुछ दिन रहने का ही है । पर मन भी कितना नादान है ? अनजान भविष्य के बारे में सोचे बगैर कहा रहता है ? भूतकाल की स्मृति एवं भविष्य की कल्पनाऐं करना तो मन…