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भीतर का श्रंगार – भाग 5
चारो रानिया कहानी सुनने के लिये लालवित हो उठी। सुरसुन्दरी ने कहानी का प्रारंभ किया। वसंतपुर नाम का नगर था। उस नगर में एक समृद्ध सेठ रहता था, उसका नाम था श्रीदत्त ! श्रीदत्त की पत्नी श्रीमती शीलवती एवं गुणवंती नारी थी। श्रीदत्त की राजपुरोहित सुरदत्त के साथ गाड़ मैत्री थी। दोनो को एक दूसरे पर सम्पूर्ण भरोसा था। एक…
भीतर का श्रंगार – भाग 4
एक बात मेरी समझ मे नहीं आ रही हैं’… तीसरी स्त्री ने प्रश्न किया। कौन सी बात ..? सुरसुन्दरी ने पूछा। पति के विरह में स्त्री को बाहरी श्रंगार क्यो नही करना चाहिए ? यह बात में तुम्हें समझाती हूं.. इस दुनिया मैं शीलवती नारी यदि कोई सबसे बड़ा दुश्मन है तो वह है उसका रूप ! इस दुनिया के…
भीतर का श्रंगार – भाग 3
अपन स्त्रियो के वस्त्रो में सबसे महत्वपूर्ण वस्त्र है कंचुक ! दया एवं करुणा का कंचुक अपन को पहनना है। स्त्री करुणा की जीवित मूर्ति होती है… क्षमा एवं दया की जीवन्त प्रतिमा सी होती है। अपने गले मे शील एवं सदाचार का नवलखा हार सुशोभित हो रहा हो। यह अपना कीमती में कीमती हार है। प्राण चले जायें तो…
भीतर का श्रंगार – भाग 2
चारो रानिया सुरसुन्दरी से खिलखिलाते हुए कहती है- आज तो हम पक्का इरादा करके आई है.. आज हम हमारी ननदिजी को सुंदर कपड़ो एवं कीमती अलंकारो से सजायेगी ! तुम मना मत करना ! नहीं करोगी ना ? सुरसुन्दरी हंस पड़ी। उसने कहा ओह इसी बात कहने के लिए इतनी लम्बी प्रस्तावना की ! ओर।। नही तो क्या ? उस…
भीतर का श्रंगार – भाग 1
सच्चा प्रेम, दिये बगैर नही रहता ! वास्तविक आंतरिक स्नेह, प्रदान किये बगैर नही रहता ! खुद के पास जो अच्छा हो..श्रेष्ठ हो सुंदर हो उसका अपना करेगा ही प्रेमपात्र के लिए। विद्याधर राजा की चारो रानिया सुरसुन्दरी के ज्ञान एवं गुणों पर मुग्ध हो गयी थी। सुरसुन्दरी का व्यक्तित्व धीरे धीरे समग्र राजमहल पर छाने लगा था। इतना ही…