असहाय रूपवती यौवना ।निराधार लावण्यमयी ललना। शायद ही किसी विरले आदमी की आँखे उस योवना में भगिनी का निर्मल दर्शन कर सकती है। कोई महापुरुष ही उस लालना से जननी मातृभाव के दर्शन कर सकते है । उसे सहायक बनते है। उसका आधार बनते है ।राजा मकरध्वज की विकारी आँखे सुरसुन्दरी के देह पर बरफ पर फिसलती बारिश की तरह…