Archivers

चौराहे पर बिकना पड़ा – भाग 6

मेरे अमर! अब शायद इस जनम में में तुझ से कभी नहीं मिल पाऊँगी! केवल तिन दिन बचे है… मेरे पास।यदि मेरा महामंत्र मुझे और कोई रास्ता सुझायेगा मेरी शीलरक्षा के लिये… तो मै आत्मघात का रास्ता नही लुगी…वर्ना… अरे! आज मेने अभी तक नवकार का जप क्यों नहीं किया? बस … अब यहाँ अन्य तो कुछ कार्य है नही……

Read More
चौराहे पर बिकना पड़ा – भाग 5

पर यह क्यों हुआ । इसने मुझे क्यों ख़रीदा? मै खूबसूरत हुँ इसलिए ? मेरा सौन्दर्य ही मेरा दुश्मन बना हुआ है। वह धन्नजय एवं फानहान भी मेरे पर इसीलिए मोहित हुये थे न।मेरे रूप के पाप से। मेरे रूप को मै कितना चाहती थी। मेरे रूप को देखकर में अपना पुण्योदय मानती थी।अमर जब मेरे रूप की प्रशंसा करता…

Read More
चौराहे पर बिकना पड़ा – भाग 4

ससुरसुन्दरी : तो यह क्या वेश्या गृह है और तुम…? लीलावती: इसमे चोकाने की कोई बात नहीं है…. पैसे वाले लोग इसे वेश्यागृह नहीं कहते है… वे इसे स्वर्ग कहते। यहाँ उने अप्सराये मिलती है ।अप्सराओ के साथ आन्नद प्रमोद के लिये वे यहाँ आते हे। मै उनसे हजारो रुपये लेती हुँ । सुरसुन्दरी की आँखे सजल हो उठी। उसका…

Read More
चौराहे पर बिकना पड़ा – भाग 3

लीलावती के पीछे फानहान सुरसुन्दरी को लेकर चला।सुरसुन्दरी परेशांन थी इस अनजान प्रदेश में मेरे लिए सवा लाख रुपये देने वाली यह औरत कौन है। हवेली आ गई। लीलावती ने सवा लाख रुपये गिन कर दे दिये। फानहान रुपयो को लेकर सुरसुन्दरी की और कटिलतापूर्ण हस कर चल दिया। लीलावती सुरसुन्दरी को लेकर अपने भव्य रतिक्रिया भवन में आयी। क्या…

Read More
चौराहे पर बिकना पड़ा – भाग 2

चौराहे के बीचों बीच एक लम्बा ऊँचा चबुतरा था। फानहान ने सुरसुन्दरी को उस चबूतरे पर खड़ी रखा और खुद उसके पास खड़ा रहकर चिल्लाने लगा ।सुनो भाई ।सवा लाख रूपये देकर जिस किसी को चाहिये इस रूपसुन्दरी को यहाँ से ले जाये। भारत की इतनी खूबसूरत परी तो सवा लाख में भी फिर दुबारा नहीं मिलेगी ।ले लों चाहिये…

Read More

Archivers