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फिर वो ही हादसा – भाग 7

सुरसुन्दरी ने अपने स्वर में शख्ती लेते हुए कहा : ‘फानहान, एसी ही बात कुछ ही दिन पहले तेरे जेसे एक व्यापारी धनंजय ने मेरे सामने रखी थी | जब मैंने इन्कार किया तो वह मेरे पर जबरदस्ती करने पर उतारू हो उठा था पर मैंने चतुराई सी मेरी सुरक्षा कर ली |आखिर मै अपनी इज्जत बचाने के लिए महासागर…

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फिर वो ही हादसा – भाग 6

सुरसुन्दरी का आन्त: कर्ण चीख रहा था : यह व्यापारी भी धनजय जीतना ही लंपट है….तू जरा भी लापरवाह मत रहना | इसकी आवभगत में लुभा मत जाना | उसके शब्दों में फसना नहीं | परायी स्त्री, रूप और जवानी, एकांत….विवशता….इन सब का मतलब, आदमी ललचाये बेगेर नहीं रहेगा | एक हादसा हो चूका है….|’ सुरसुन्दरी हरपल ~ हर क्षण…

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फिर वो ही हादसा – भाग 5

‘यह व्यापारी भी मेरे लिए आपरिचित है…उसकी मुराद अच्छी नहीं लगती | उसकी आखो में हवस है….अलबत्ता,इसने मेरी सारसंभाल ली है | पर यह भी जवानी का आशक तो होगा ही | क्या ओरत की जवानी यानि पुरुषो की वासना तृप्त करने का भोजन मात्र है ? नही ! यह मुझे छुए उससे पहले तो में कूद गिरुगी, इस समुन्द्र…

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फिर वो ही हादसा – भाग 4

व्यापारी ने हँसते हुए कहा । उसके हास्य में धूर्तता थी । सुरसुन्दरी सावधान हो गयी । ‘बातें तो बाद में करने की ही है … पहले तू खाना खा ले ।’ ‘नहीं , मुझे खाना नहीं खाना है ।’ ‘कब तक तू इस तरह भूखी रहेगी ?’ ‘जब तक रह सकुंगी तब तक ।’ सुरसुन्दरी ने नीची नजर रखते…

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फिर वो ही हादसा – भाग 3

सुरसुन्दरी बेहोश हो गयी थी । उसके सर के पिछले हिस्से में से खून आ रहा था । फानहान ने तुरन्त चोट लगे भाग को घो कर पट्टी लगा दी । ठंडे पानी के छींटे दे दे कर सुरसुन्दरी को होश में लायी । किनारे पर सैकड़ों नगरवासी इकट्ठे हो गये थे । फानहान ने इशारे से लोगों को समझा…

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