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अपूर्व महामंत्र – भाग 8
पांच ऐरवत और पांच भरत में भी शाश्वत सुख देनेवाले इस मंत्र को गिना जाता है । हे आत्मन , अत्यन्त भयानक ऐसे भावश्त्रयो के समुदाय पर विजय प्राप्त करने वाले अरिहंतों को, कर्ममल से अत्यन्त शुद्ध हुए सिद्ध भगवंतो को, भावश्रुत के दाता उपाध्याय भगवंतो को एवं शिवसुख के साधक सभी साधु भगवंतो को नमस्कार करने के लिये निरन्तर…
अपूर्व महामंत्र – भाग 7
महामंत्र का स्मरण या श्रवण करते वक्त यों सोचना विचारना चाहिए कि : ‘मैं सवर्गी अमूत से नहाया हूँ…. चूंकि परमपुण्य के लिये कारणरूप परम्मगलमय यह नमस्कार महामन्त्र मुझे मिला है । अहो । मुझे दुर्लभ तत्व की प्राप्ति हुई । प्रिय का सहवास मिला । तत्व की ज्योत जली मेरी राह में । सारभूत पदार्थ मुझे प्राप्त हो गया…
अपूर्व महामंत्र – भाग 6
ज्यों नक्षत्रों में चन्द्र चमकता है वैसे तमाम पुण्यराशियों में भाव नमस्कार शोभित बनता है । विधिपूर्वक आठ करोड़ , आठ लाख , आठ हजार , आठ सौ आठ बार इस महामंत्र का जाप यदि किया जाय तो करनेवाली आत्मा तीन जन्म में मुक्ति प्राप्त करती है। अतः हे भाग्यशीले, तुझे मैं कहती हूं कि संसार – सागर में जहाज…
अपूर्व महामंत्र – भाग 5
ज्यों गरुड़ का स्वर सुनकर चंदन का वुक्ष सर्पो के लिपटाव से बरी हो जाता है, उस तरह नमस्कार महामंत्र की गम्भीर ध्वनि सुनकर मनुष्य के पापबंधन टूट जाते है। महामंत्र में एकमना जीवों के लिये जल-स्थल श्मशान – पर्वत – दुर्ग वगैरह उपर्दव के स्थान भी उत्सवरूप बन जाते है। विधिपूर्वक पंचपरमेष्टि-नमस्कार मंत्र का ध्यान करने वाले जीव तिर्यंच…
अपूर्व महामंत्र – भाग 4
सुरसुन्दरी तो आश्चर्य के सागर में मानों डूब गयी….’ओह, गुरुमाता। आपको मेरे मन की इच्छा का कैसे पता लग गया। मैं खुद आपको यही प्रार्थना करनेवाली थी कि ‘आप मुझे सबसे पहले श्री नवकार महामंत्र का स्वरूप समझाने की कुपा करें।’ और आपने खुद यही बात कही।’ ‘कितना अच्छा इत्तफाक मिल गया। तेरी जिज्ञासा के अनुरूप प्रस्ताव हो गया। तू…