साध्वीजी के अमृत वचन सुरसुन्दरी के दिल में गूंजते रहे। श्री नमस्कार महामंत्र के प्रति श्रद्धा ज्यादा मजबुत हुई। निस्वार्थ और निस्पृह साध्वीजी की बाते उसे पूर्णरूप से विश्वसनीय लगी। रात्रि के समय महामंत्र का स्मरण करते करते ही वह निद्राधिन हुई। सुबह जब वह जगी तब एकदम प्रफुल्लित थी। उसका ह्रदय अव्यक्त आनन्द की संवेदना से सभर था। उसे…