“जुनून” एक ऐसा शब्द है जिससे इन्सान अपना जीवन बदल सकता है। जूनून अगर इन्सान मे होता है तो वह हारी बाजी को भी जीत मे बदल सकता है। चाहे फिर वह जीत के लिए रेसलिंग की रिंग मे हो या क्रिकेट का मैदान हो। अगर इन्सान जूनून हो तो वह जीवन का रण भी जीत जाता है।
यह जूनून की ही रण भेरिया है जिसके दम पर ही कुमार प्रत्येक बुद्ध बने है। एक जूनून जीवन मे बनाया था बाल्यकाल मे तब जाकर शासन वज्रस्वामी जैसे नुर मिला था।
शायद सुल्तान को देखकर आपके खुन मे मिट्टी की सुगंध आ जाती है तो मिट्टी मे आपका खुन आ जाता है। मुझे सिनेमा को देखकर जूनून नही आना चाहिए। मुझे तो मेरे महापुरुषो से विरासत मे जूनून मिला है।
एक जीवदया का जूनून चडा था। 18 देश के अधिपति कुमारपाल महाराजा को तो वह तो अपने प्राणो की चिन्ता किये बिना जीवदया मे अढीक रहे तो उन्होंने प्रभु वीर की हाजरी से ज्यादा अमारी का उद्देघोष कराया था।
एक सुल्तान हमारे अन्दर आत्मविश्वास भर सकता है तो फिर हभ क्यो आगे नही बढ पा रहे है?
कारण आसान है-
आज हमारे पास जूनून नही है। किसी भी कार्य के प्रति हम मे कर्तव्य निष्ठा नही है। और जब तक मानव के अन्दर कार्य के प्रति उत्साह नही होगा, जब तक वह अपने काम के प्रति वफादार नही होगा तब तक वह दुनिया मे आगे नही बढ सकता है।
आज के युवाओ मे देखा- देखी का ट्रेन्ड है। वह किसी भी कार्य को उत्साह, उमंग, निष्ठा के साथ नही करते है। इसी का परिणाम है। वह उसमे सफल नही हो पाता। हमे दुसरो से ज्यादा खुद पर भरोसा होना चाहिए। और जब हमे यह भरोसा आ जायेगा उस दिन से हमे कोई नही हरा सकता है। हर लक्ष्य आपका होगा और इतिहास आप पडेंगे नहो खुद बनाएगे।
“भीड हमेशा उस रास्ते पर चलती है
जो रास्ता आसान लगता है।
इसका मतलब यह नही है कि भीड हमेशा सही रास्ते पर चलती है।
आपना रास्ता खुद चुनिए। क्योंकि
आपको आपसे बेहतर कोई नही जानता है।”