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नारी के दो आभूषण शील एवं साम्य्क्त्व

पुत्री को विदा करते समय समकिती माता पिता उसे हीत शिक्षा देते है की बेटा!
तू शील और समयक्तव का शुद्धता से पालन करना। इनके साथ कभी भी समजोता मत करना…

जैन कुल के जन्मी नारी के दो ही आभूषण होते है।एक शील तो दूसरा समयक्तव। इन
दोनो आभूषणो से सदैव उसका जीवन शोभित होना चाहिए। इन दोनो आभूषणो से ही नारी
अपने अवतार को सार्थक कर सकती है। सिर से लगाकर पाँव तक नारी अगर आभूषणो से
सजी हो किंतु उसके पास शील और समयक्तव न हो तो अनेक आभूषणो के बावजूद भी वो
शोभित नही होती है। वह नारी श्रृंगार रहित ही होती है। अन्य आभूषण तो द्रव्य
आभूषण है परन्तु शील और समयक्तव भाव आभूषण है। द्रव्य आभूषण से शरीर
श्रृंगारित हो सकता है परंतु आत्मा तो मात्र भाव आभूषण से ही श्रृंगारित होती
है।

आज आप अपनी पुत्रियों को कैसे वातावरण मे पाल रहे है। उसका कैसे समूह में
पालन पोषण कर रहे है की आज उसे शील शब्द सुनकर हो रहा है कि यह शील क्या बला
है। आज की शिक्षा, आज मित्र समूह, आज कल के टी. वी. शो म, विडीओस ,सोशल
मीडिया, इवेंट, प्रिंट मीडिया, मेगजिन,यह सब देखने पढ़ने के बाद उसके मन में
यह प्रश्न उठता है कि ‘यह शील भला कहा से आया? पेट की भूख जागे तब जैसे खा
लेना चाहिए वैसे ही शरीर की भी भूख जागे तब भोग कर लेना चाहिए। जैसे पेट की
भूख है वैसे शरीर की भी एक भूख है एसी उनकी मान्यता हो गई है। इसी से शील
अर्थात् क्या? एसी मान्यता घर कर जाने से मिथ्यात्व आया है। जिसे भोजन तथा भोग
समान लगते है उसमें समयगदर्शन प्रकट होने से पहले ही समयगदर्शन को प्राप्त
करने की भूमिका ख़त्म हो चुकी है। उसका जीवन मिथ्यात्व की दुर्गन्ध से दूषित
हो गया है एसा कहने में कोई अतिशयोक्ति नही लगती है!

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