जब बीमार मरीज़ डॉक्टर के पास जाता है तो डॉक्टर उससे पूछता है आपको क्या तकलीफ़ है ?
और जैसे ही डॉक्टर बोलता है की बोलो क्या हुआ उस समय मरीज टेबल से बोलना start करता है। मानो वो मरीज़ मै खुद हूँ और मैंने मेरा भाषण देना शुरू करा।
डॉक्टर साहब आखो से बराबर दिखता है, कानो से सब कुछ सुनाता, ब्लूडप्रेशर बराबर है। भुख समय पे लग रही है। खाना भी सही से पच रहा है। पाचन तन्त्र सक्रीय है। हीमोग्लोबिन भी नार्मल है। यूरिन की रिपोर्ट भी नार्मल है।
डॉक्टर ने मेरा ये भाषण सुनकर मुझे रोका और कहा भाई अगर आप मुझे आपकी समस्या तकलीफ़ नही बताओगे और अपनी अच्छाईयो को गाते रहोगे तो मै क्या दुनिया का कोई भी डॉक्टर आप को निरोगी नही बना सकता है। निरोगी बनाना है तो मेहरबानी कर के मुझे अपनी तकलीफ़ बताओ।
अरे मै भी जब जगतनाथ के पास जाता हूँ तो मेरा वर्तन भी ऐसा ही होता है। मै भी अपने गुणों को गाता हूँ।
मुझे क्रोध नही आता है। मै सब के पास विनम्र बनकर जाता हूँ सरलता तो ठूस ठूस के भरी है।
बस में तो प्रभु के पास जगत के पास हर जगह मेरी खूबियों को ही गाता हूँ। खुद की क्षतियों को छुपाता हूँ। भूल को ढकने की कोशिश करता हूँ। मेरे इस व्यवहार से मुझे क्या भाव आरोग्यता की कभी भी प्राप्ति हो सकती है ??
प्रभु कुछ तो करो मेरे अवगुणों को निकालकर मेरा भाव आरोग्यता प्रगट हो जाये इसके लिए।
बस आप तो मुझे तारकर आपकी तारकता को सिद्ध कर दो।