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अनार्य भूमि पर जन्मे आर्थर एश से हमें कुछ सिखाना चाहिए

आज हमारे परिणाम कैसे हो गए है। हम अगर सफल होते तो उसका श्रेय हमारी मेहनत को देते है। मगर असफल हो जाते है तो उसका श्रेय हम तुरन्त ही दुसरो को देते है। वह आदत बचपन से ही हमारे में प्रवेश कर जाती है।

“बचपन में जब पप्पू पास हो कर आता था तो वह बोलता की मेरी मेहनत से पास हुआ हूँ। और अगर फ़ैल हो के आता था तो बोलता था की टीचर ने फ़ैल कर दिया है।”

हम भी कही पप्पू की तरह तो नही हो गए है।
हमारा टार्गेट, लक्ष्य , गोल कभी भी पप्पू की तरह मत बनाना।
अनुसरण अगर करना हो तो अनार्य देश के इस नौजवान का करना।

यह नौजवान जब H.I.V की भयंकर बीमारी की पीड़ा में रहा था तब उसके प्रशंसको ने उसे सात्वना के letter लिखे। उस में से एक letter आया जिसमे उसके फेन ने लिखा था की भगवान ने इस भयंकर बीमारी के लिए आपको क्यों चुना। भगवान में शायद दया ख़त्म हो गयी थी। इस प्रकार उस प्रशंसक ने भगवान को बहुत कुछ भला बुरा कह दिया।

इस अनार्य देश में जन्म लेने वाले इस नौजवान ने इस letter का जोरदार जवाब दिया।

उसने कहा की विश्व में हर साल 5 लाख लोग टेनिस खेलना शुरू करते है। जिसमे 50000 लोग ही इस खेल में आगे बड़ पाते है। फिर सिर्फ 5000 लोग इस खेल को अपना बिज़नेस बना पाते है। उनमे से 500 लोग world level की किसी प्रातयोगिता में खेल पाते है। इन 500 में से सिर्फ चार लोग सेमिफाइनल में पहुंचते है। फिर इन चारो के घमासान में से 2 लोग final match में पहुंचते है। और इन दोनों में से एक ही व्यक्ति के हाथ में विबिल्डन की वो ट्रॉफी जाती है। 5 लाख लोगो में से only for एक इंसान के पास वो ट्रॉफी जाती है।

और जब वह ट्रॉफी मेरे हाथ में आई थी उस दिन मैंने भगवान का शुक्रिया अदा नही किया था। भगवान से ये भी नही पूछा था की हे! भगवान तूने मुझे इसके लिए क्यों चुना । तो फिर आज मै(आर्थर एश ) भगवान से किस मुह से पुछु की भगवान तूने इस भयंकर बीमारी के लिए मुझे क्यों चुना।

जब एक अनार्य संस्क्रुति में जन्म लेने वाला विबिल्डन का विजेता अपने प्रशंसक के पत्र का यह इतना धार्मिक जवाब दे सकता है तो हमने तो आर्य भूमि पर जन्म लिया है। धर्म और संस्क्रुति हमारे जीवन में ओत प्रोत है तो भी हमारे पास ऐसी दॄष्टि नही है। हम यहाँ भी दोषा-रोपण करते है। तो हमे आर्थर एश के पास से उसका यह गुण हमारे जीवन में उतारना चाहिए।

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