मुनिसुव्रत स्वामी प्रभु के स्तवन की मन भावन पंक्ति-
“प्रभु उपकार गुण भर्या, मन अवगुण एक न आए”
उखेडे को उद्यान बनाने का एक जोरदार फर्मुला इस पंक्ति मे दर्शाया है।
दुसरो के अवगुणो और दोषो पर जल्दी नज़र चली जाती है। और अवगुण और दोष जल्दी चिपक जाते है और मन की हालत उस समय उखेडे से भी बदतर हो जाती है।
महानगर की बडी सिटी मे हम देखते है किसी का प्लॉट खाली पडा होता है तो लोग उसे सुलभ शौचालय की तरह बेरोकटोक उपयोग करते है। कोई वहाँ कचरा फैकता है तो कोई असुचि करता है। पर इसमे गलती उन लोगो की नही है जिन्होंने उसे गन्दा किया है। बल्कि गलती उसकी है जो उसका मालिक है। क्योंकि उसने उसे खाली रखा। इसी का परिणाम आया की लोगो ने उसे गन्दा कर दिया। और शायद यही हालत हमारे मन की भी है।
हम हमारे मन को खाली रख देते है। तो फिर उसमे कचरा आना ही आना है। हमारे मन को हम खाली रखते है तो फिर वह दुषित तो होगा ही।
खाली मन शैतान का घर होता है। और शैतान मात्र और मात्र अवगुण और दोषो से मन को भर देता है। और मेरा मन शैतान का घर न बने इसलिए इस स्तवन की पंक्तिया मे अजब गजब फर्मुला बतया है।
प्रभु के उपकार अनंत है। प्रभु के गुण अनंत है। जिसका हिसाब किताब लगाते लगते आयु कम पड जाएगी। मेने अगर उनके उपकारो को और गुणो को चिन्तन करना शुरू किया तो मेरा मन भर जाएगा। और जब मन भर जाएगा तो फिर उसे कोई बाहारी आकार गन्दा नही कर सकता है।
“तो बस प्रभु के गुणो मे मन को लगाकर उसे उद्यान बनाए” ।।