चीन के छानटेग जिले मे लीन ह्रसेन गाँव मे आलीशान गगन चुंबी मंदिर बनकर के तैयार हो गया। अब वहाँ पर भगवान की प्रतिमा की प्रतिष्ठा करनी थी इसके लिए संतो ने सोना और चाँदी इक्ट्ठा करना शुरू किया।
भिक्षु गाँव गाँव घुमकर गौतम बुद्ध की प्रतिमा के लिये लोगो को प्रेरणा देते थे और लोग भिक्षुओ की झोली को सोना- चाँदी से भर देते है।
एक गाँव मे एक छोटी सी बालिका भिक्षु के पास आयी। और उसने झोली मे ताँबे का सिक्का डाल दिया। भिक्षु यह देखकर गुस्सा हो गया। उसने लडकी से कहाँ- तेरी अक्कल ठिकाने पर है या नही? भगवान के नाम पर इस झोली मे सोने- चाँदी के सिक्को की वर्षा हो रही है और तुम इस झोली मे ताँबे का सिक्का डाल रही हो जो काम का नही है?।
इतना बोलकर भिक्षु ने ताँबे का सिक्का सडक पर फैक दिया। उस छोटी सी बालिका ने भिक्षु से विनंती करी परंतु उसने नही स्वीकारा। बालिका रोती- रोती सिक्का लेकर घर की ओर चली गई।
दान मे मिले द्रव्य को गलाकर धातुओ का रस बनाया। और कुशल कारीगर उस रस को मूर्ति मे ढालने के लिए तैयार हुए। मूर्ति तैयार करी पर प्रभु के चहरे पर सौम्यता के बदले (विणाद) आ रहा था।
मूर्ति को गलाकर फिर बनाया। परंतु बार- बार मूर्ति पर चिंता के भाव ही ज्यादा दिख रहे थे। पाँच से सात बार प्रयत्न किया परंतु प्रतिमा का चेहरा विशाद युक्त ही रहा।
महा भिक्षु ने सब को बुलाकर पुछा की भिक्षुओ दान लेते समय किसी का दिल दुखाया क्या? उस भिक्षु को छोटी सी बालिका का चेहरा फिर से याद आया। उसको बालिका का रोता हुआ चेहरा दिखा। उसने महा भिक्षु से बात करी। ताँबे के सिक्के की फैकने की बात भी बतायी। महा भिक्षु ने कहाँ उस बालिका के पास जाओ और सिक्का लेकर आओ। भगवान वह प्रेम के भुखे है। अभी ही उस गाँव मे जाकर बालिका से अनमोल भेट लेकर आओ। भिक्षु गाँव मे गये। बालिका को ढूंढा, माफी मांगी और सिक्का ले आये।
ताँबे का सिक्का लेकर मूर्ति को ढाला तो भगवान का चेहरा सौम्यता स्मित वाला बन गया। ह्रदय के पास ताँबे का सिक्का चमकता हुआ नज़र आया।
आज भी चीन के लीन ह्रसेन गाँव मे दस फुट ऊँची मूर्ति मे ताँबे के सिक्के मे भक्त भावना नज़र आ रही थी।