चलो थोडा सा स्मरण करते है हम past का। 1500 वि स. मे जब दिल्ली पर मुगलो का राज था कस्तुर भाई सेठ की दसवी पीढी मे शान्तिदास शेषकरण झवेरी थे। उस समय अहमदाबाद की ब्रान्ड थे। प्रतापी प्रभावी व्यक्तित्व के धनी थे। धर्म मे आस्थावान चुस्त श्रावक थे। खुद के पुरुषार्थ के बल पर खुद के भाग्य के ताले उन्होंने खोले थे। बुद्धि, चतुराई, विनम्रता के साथ उन्होंने दिल्ली सुलतान के साथ संबंध स्थापित करे थे। अकबर, जहागीर, शाहजहा, और ओरंगजेब इन चारो का समकालीन शासन था। उन चारो मुगल बादशाहो से शत्रुंजय तीर्थ के लिए जिनशासन के हित मे फरमान निकालाये थे। अकबर की बेगम को एक बार आश्रय शांतिदास सेठ ने दिया था। जिससे बादशाह जहाँगीर उन्हे मामा शब्द संबोधित करते थे। शान्तिदास सेठ को इन राजाओ ने नगर सेठ की पदवी से नवाजा था।
राजसागरसूरिजी महाराजा को आचार्य पदवी दिलाकर सागर गच्छ की स्थापना करी थी। अहमदाबाद के बी बी पुर वर्तमान का सरसपुर मे 9 लाख रुपए खर्च कर भव्य जिनालय बंधवाया था। 2 लाख रुपये खर्च करके प्रतिष्ठा करवाई थी। थोडे समय बाद अहमदाबाद का सूबेदार ओरंगजेब बना। धर्म का जूनुनी बनकर उसने जिनालय को खंडित करके ” कौवत – अल इस्लाम ” इस्लाम की ताकत इस नाम की मस्जिद बनायी। इस कारण से शहर मे बहुत बडा कौमी तुफान खड़ा हो गया।
शान्तिदास सेठ ने दिल्ली के बादशाह से बात करी और सेठजी का प्रभाव ऐसा था कि बादशाह ने मंदिर वापिस देने का हुक्म जारी कर दिया। और जो भी नुकसान हुआ है उसकी भरपाई करने का भी आडर जारी कर दिया।
शान्तिदास सेठ ने जो जिनशासन और शत्रुंजय महातीर्थ की सेवा करी उसके लिए स्मरण रूप मे fix रूप से उनके वंश वारीसदार को सेठ आन्नदजी, कल्याण जी पेढी की मेनेजमेंट मे स्थापना समय से लेने का नक्की करने मे आया था।
इस तरह से इस सेठ परिवार मे जैन संघ की सेवा, तीर्थ की रक्षा, जन कल्याण के कार्य वंश परंपरा से ही मिलते आ रहे है। इसी परंपरा को शांतिदास शेठ के पुत्र लक्ष्मीचंद सेठजी किस तरह निभाया, कैसे मुश्किल समय मे उन्होने गुजरात राज्य के लोगो की सेवा करी सब जानना है।
Next day इस समय पर आगे की बात करेंगे।।?