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जीवन का यथार्थता का पत्थर में सर्जन

शिल्पकारों द्वारा बनाये गए अनेक शिल्पों का प्रदर्शन करने में आया। शिल्पकारों ने गजब की मेहनत करके अद्भूत शिल्प का निर्माण किया है। सारे शिल्प अपने आप में खूब सुन्दर थे पर उन सब में एक शिल्प सभी ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर रहा था ।

एक कला प्रेमी से रहा नही गया। उसने शिल्पकार का अभिनन्दन करते हुए पूछा की आप मुझे इस शिल्प का रहस्य समझाओ।

शिल्पकार ने पूछा की आपको इस शिल्प में क्या नज़र आ रहा है? क्या समझ रहे हो?

एक मानव है उसने अपने सिर पर पृथ्वी के गोले को स्थिर पकड़ रहा है। उसके पैरो में आग लगी हुई है ।तो भी उस मानव का संपूर्ण ध्यान पृथ्वी के गोले को पकड़ने में ही केन्द्रित था।। यह तो एक सामान्य अर्थ है। इसमे तो जीवन का गूढ अर्थ छिपा हुआ है । जो वर्णन अपने करा है वह तो शिल्प में दिखाई दे रहा था। पर में अब मै इसका short में अर्थ समझाता हू। इंसान खुद के सिर पर पूरी दुनिया का भार लेकर घुमता है। और मानता है की दुनिया का भार उसके सिर पर है। वह खुद नहीं रहा तो धरती पर बहुत बड़ी गड़बड़ी हो जायेगी पर उसे खुद को इतना भी भान नहीं रहता की उसके पैरो के निचे आग लगी हुई है।

शिल्पकार के द्वारा समझाये गये अर्थ के बाद आस पास वाले उसे और ध्यान से देखने लगते है।

मेरा मानना तो था की पत्थर में कविता को घडा जा सकता है। पर इस शिल्पी ने तो कमाल कर दिया सम्पूर्ण जीवन की फिलॉस्फी को घड दिया।

दुनिया में इंटेरफेर करने में इंसान इतना मस्त हो जाता है की उसे उसके पैरो के निचे लगी आग का भी भान नहीं होता है।

दुसरो को हताशा में से बहार निकलने के लिए प्रयत्न करता इंसान खुद निराशा में फसा है बहार निकल नहीं पता है। मानव को खुद के द्वारा सर्जन की गयी समस्याओ से बहार निकल कर खुद की मस्ती में जीवन जीना चाहिए।
पर आज लोगो को खुद की समस्या में नहीं दुसरो की समस्या में ज्यादा रस होता है।

इस जीवन की सच्चाई के सुन्दर वर्णन को जीवन मे ग्रहण करके सुन्दर बनाए शिल्पी को सही भेट दे पायेगे।

कभी भी दुसरो को बदलने की अपेक्षा मत रखो स्वयं बदलो जैसे कंकर से बचने के लिये जूते पहना उचित है। न की पूरी धरती पर कारपेट बिछाना।

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