Archivers

कुरूदत्तपुत्र देव का पूर्वजन्म

महावीरप्रभू के समय में राजगृही नगरी में एक कुरुदत्त नामका धनवान प्रसिद्ध था । पिता कि प्रसिद्धि इतनी विशाल थी कि पुत्र खुद के नाम से नहीं , कुरुदत्तपुत्र के नाम से ही प्रसिद्ध हुआ । जवानी की बारदान पर चढ़ा हुआ यह कुरुदत्तपुत्र प्रभु महावीर का उपदेश सुनकर संसार को लात मारकर निकल पड़ा । प्रभु के पास दीक्षा ली। प्रभु का शिष्यत्व स्वीकार करके जीवन को उज्जवल बनाया।

इतना उग्र तप , इतनी उग्र, साधना ,इतनी उग्र आतापना और इतनी उग्र तितिक्षा इस मुनिने आत्मसात की कि जो हमें जीवनभर की साधना से भी कदाचित नहीं मिले।

अति कठोर साधना के कारण ही संयम लेने के बाद छः महिने में तो उनके जीवन की चादर सकुंचित हो गई । ऐसी तो क्या साधना की होगी? दीक्षा ली उसी दिन में अट्ठम शुरू किया। पारणे में भी निश्चित रूप से आयंबिल तप किया। प्राणो के अंत तक यह परंपरा टिकाई ।
हद तो अब होती है -इस तप के साथ रोज वे सूर्य के सामने द्रष्टि रखकर तथा दोनों भुजाओं को आकाश में तैरते हुये रखकर घोर आतापना लेते थे । ऐसी आतापना एक मिनिट के लिये भी असह्य है। ऐसी उन्होंने छः महिने तक ली।

तप से तथा ऐसी विशेष आतापना से शरीर की धातुओं को जैसे जला दिया ।अब शरीर क्षीण होने लगा है ऐसा लगा तब प्रभु की आज्ञापूर्वक अनशन किया ।पंद्रह दिन तक दृढ़ अनशन पालकर मृत्यु को प्राप्त हुए ।

दूसरे देवलोक में इशानेंद्र के समानिक देव के रूप में उत्त्पन्न हुए । इस देव को भगवतिसूत्र में कुरुदत्तपुत्र के रूप में संबोधित किया गया है । इशानेंद्र के जीतनी ही समृद्धि ,आयुष्य , रूप तथा शक्ति का वह स्वामी है ।

– आधारग्रंथ : सिरि भगवई सुत्त ।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Archivers

अब्धिकुमारदेव का पूर्वजन्म
May 5, 2018
तिष्यक देव का पूर्वभव
May 5, 2018