Archivers

रात का संदेश जीवन को नई राह देता है।

रात और दिन के बीच मे एक बार संवाद हो गया। रात पुरी होने वाली थी और दिन उगने वाला था। ओर इसी बीच दोनो की मुलाकात हो गई। दोनो आमने सामने आकर खडे हो गये।

रात्रि ने दिवस से पूछा- जगत मे रहने वाले कितने ही इन्सान को आलसी, कायर, दुःखी और निराश बनाने तुझे क्या आन्नद आता है?

इस तरह दिन को रात्रि के प्रश्न को सुनकर बहुत ज्यादा आश्चर्य हुआ। उसने विस्मयता के साथ पुछा क्या कहाँ रात्रि तुने? मै लोगो को आलसी, कायर, दुःखी और निराश बनाता हूँ। अरे रात्रि ! तेरा दिमाग ठीक नही है। तेरे सारे आरोप बिना हाथपैर जैसे है। अरे मै तो प्रकाश देता हूँ। प्रकाश वही तो प्रगति का निशान है। प्रकाश देकर इन्सान को प्रवृतिशील रखने का प्रयत्न करता हूँ। प्रकाश से लोगो के जीवन मे गति आती है। प्रकाश से ही नये नये मार्ग विश्व को मिलते है।

यह सारी बाते बोल दिवस थोडी क्षण रूका ।

उसके मन मे एक विचार आया था। उसे प्रगट करने मे उसकी हिम्मत नही हो रही थी। पर उसने हिम्मत करके उसने रात्रि से कहाँ- बहन अगर तुझे बुरा नही लगे तो एक बात पुछु ?

रात्रि ने हस्ते हस्ते कहाँ नही नही बुरा क्या लगेगा। मेरे मन की बात मेने पुछी तो भी तेरे मन की बात पुछ।

दिवस ने कहाँ- इन्सान को आलसी, कायर, दुःखी और निराश मै नही तू ही बनाती है।

इस बात को सुनते ही रात्रि स्तम्भित हो गई और उसने पुछा किस तरह से मै बनाती हूँ?

दिवस ने कहाँ तुr लोगो को अंधकार से घेरती है। अंधकार वह पतन का निशान है। बोल लोगो को दुःखी करने वाला मै नही तू है।

रात्रि ने उतर दिया- भाई मै तेरे बात से सहमत नही हूँ। क्योंकि तू मानव को प्रकाश देकर मात्र और मात्र सुख का अनुभव करता है। और वह सुख के साथ दुःख का अनुभव नही कर सकते है। विपत्ति का सामना करने मे वह कायर बनते है। निराश हो जाते है। मै तो जगत को अंधकार की चादर ओडा कर जीवन के दुसरे पासे का अनुभव कराती हूँ। मै तो रुमझुम तारो की चुन्दरी ओढाकर मानव को संदेश देती हूँ कि- हे मानव! तु प्रकाश को मनाता है सर्व जगत पर सुख सुविधा को शोधता है। आशा की ईमारतो को चुनता है। पर सबसे पहले तु अंधकार को जानेगा तभी तो तुझे प्रकाश की कीमत समझ मे आयेगी। दुःख के बिना तु सुख की कीमत को कैसे समझेगा?

दिवस रात्रि का संदेश सुनकर मंत्र मुग्ध हो गया ।।

उजम बाई मे धर्म की दृढ़ता देखकर हर कोई उनकी धर्म की भावना को नमन करता है
April 19, 2016
जैन संत के सत्संग का प्रभाव
April 20, 2016

Comments are closed.

Archivers