एक बार एक गधा मालिक के घर से निकलकर चलते चलते गाँव के किनारे पर पहुँच गया। गाँव के अंत में एक छोटा सा कुंआ था, जिसमे पानी नहीं था। लोग उसमे कचरा फेंका करते थे। वह गधा अचानक से कुंए में गिर गया और भोकने लगा। किसी ने गधे की आवाज को सुनकर गधे के मालिक को जाकर गधे के कुंए में गिरने के समाचार दिए।
मालिक तो समाचार मिलते ही मन में खुश हो गया। क्योंकि अब मालिक को गधा- भार रूप लगने लगा था। मालिक ने विचार किया की कुए में से इस गधे को निकला तो इसे संभालना पड़ेगा। मुझे एक अच्छा अवसर मिला है, कुंए में मिटटी डालकर कुए को सम्पूर्ण बुर देता हूँ, जिससे गधा भी मिटटी में दब जायेगा।
मालिक कुंए के किनारे पर पहुंचे और कुंए में गिरे हुए गधे को देखा। गधे को लगा जी उसके मालिक उसे बचाने आये है। तो उसने भोकना बंध कर दिया। थोड़ी देर में उपर से मिटटी गिरना शुरू हो गई और गधे को मालिक के नापाक इरादे समझ आ गए।
गधे ने मालिक के सामने किसी भी प्रकार का विरोध नहीं किया और वह डरा भी नहीं। उसने तो एक नया नुस्खा अपना लिया। उसके ऊपर गिरती मिटटी को वह खंखेर देता तो वह नीचे गिर जाती है फिर वह उसी मिटटी के ऊपर खड़ा हो जाता। धीरे धीरे कुंआ भरने लगा और गधा भी उपर आने लगा। मालिक तो यही समझ रहा था की उसके ऊपर डाली मिटटी से दबकर वह तो मर गया होगा। कुंए में ढेर साडी मिटटी डालने से गधा और उपर आ गया और कूद कर कुए से बहार आ गया। मालिक तो आँखे फाड़कर उसे देखता रह गया।
इर्ष्यासे जलने वाले कितने ही सारे लोग हमारा नुकसान करने के भाव से हमारे बारे में उलपुल बोलते है। और समाज से हमे नीचे गिराने का जोरदार प्रयास करते है। हमे उनके साथ लड़ने के बजाय उनके द्वारा हमारे पर डाले गये शब्दों को झटक कर उसके उपयोग द्वारा ऊपर आजाना चाहिए।
“जगत जब जब मुझे कुछ कहता है..
मुझे तब तब मेरे में से ही कुछ मिलता है.”