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द्वेष के पर्याय

द्वेष के पर्यायवाची, द्वेष के विभिन्न रूप, द्वेष की अलग अलग कृतिया। इसके शास्त्रो मे 9 प्रकार बताने मे आये है।

1. ईष्या: जब हम दुसरे मनुष्य का वैभव देखते है,उसकी सम्पत्ति देखते है उस समय कैसा विचार आता है? अगर यह विचार आता है कि उसके पास इतना सारा वैभव , उसकी सम्पत्ति चली जाय तो अच्छा। इस तरह के भाव अगर आते है तो समझना ईष्या रूप द्वेष हमारी आत्मा को जला रहा है।

2. रोष: रोष यानि क्रोध। भले क्रोध मोहनीय कर्म के उदय से आता है। परंतु उसके कुछ तो बाह्य निमित्त होते है। जैसे की मनुष्य सौभाग्यशाली है। तो उसे इसका अभिमान होता है। दुर्भाग्य के भोग बने लोगो पर क्रोध करेगा। इस तरह से अनेक निमित्त होते है।जिससे जीवात्मा क्रोध करता है।

3. दोष: यह एक मलिन वृत्ति है। जिसमे मन को दूषित, मलिन करता है।अन्य के दोष को देख कर हमारे मन को बिगाड़ने का कार्य इसमे होता है।

4. द्वेष: अप्रीति होती है। जो बाहर से देखने से नही दिखती है। बाहर से वह अच्छा बर्ताव करता है।पर अन्दर ही अन्दर उसके लिए अप्रीति होती है।मन मे उसके लिए दुर्भाव होता है।

5. परिवाद: परदोषो का उत्कीर्तन। दुसरे जीवो के दोषो को देखना और बोलना यही उत्कीर्तन है। फिर भले ही वह मिठी भाषा मै बोलता है। यह किसी को ठपका देते हुए बोलता है। यह परिवाद है।

6. मत्सर : दूसरो का अच्छा नही देख सकता है। वह अन्दर ही अन्दर जलता है। फिर खुद पर तिरस्कार बरसाता है। खुद ही स्वयं को धिक्कारता है।

7. असूया: यह दोष का रूप ऐसा है कि किसी को कमा ही नही देने देता है। असूया वाला जीव क्षमाधर्म का पालन कैसे करे? क्षमा उसको जमती ही नही है।

8. वैर: आपस के कलह मे से वेर वृत्तिका जन्म होता है। जो द्वेष का बडा ही खतरनाक रूप है।

9. प्रचंडन: प्रकृष्ट कोप वही प्रचंडन शान्त हो गई कोप अग्नि को फिर से प्रज्वलित करता है।

यह सारे के सारे एक ही अर्थ का प्रतिपादन करने वाले अलग अलग पर्याय है. इसमे अन्तर अक्षरो, शब्दो का है। प्रतिपादन का विषय तो द्वेष है। उसके विभिन्न रूपो को जानकर के ही उसका क्षय और नाश करने के लिए प्रयत्नशील बन सकते है।बस तो इन पर्याय को जानकर इसे समाप्त करते है।

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