शान्तिदास सेठ lll पुत्र लक्ष्मी सेठ ने इस्वी 1657 मे बादशाह शाहजहा के पुत्र मुरादबक्ष को 5 लाख रुपये की राशि देकर मदद करी थी। उसने एक साल मे ही रकम लौटा दी। वि. संवत् 1717 मे जब दुकाल पडा था जिस समय मे गुजराती का पास खाने को दाना नही था। अहमदाबादी रोटी के पीछे मृत्यु को पा रहा था। ऐसे समय लक्ष्मी सेठ और उनके तीनो भाई जगडुशा की तरह लोगो की मदद कर रहे थे। ऐसे विकट समय मे इन्होंने दान के दरवाजे खोल दिए थे।
लक्ष्मीचंद सेठ के पुत्र खुशालचंद जी खुब भावनाशील, कद्दावर, सहासीक पुरुष थे। इस्वी 1725 मे मराठा जब अहमदाबाद को लुटने के लिए जब सुरत से निकल चुके थे उनको रोकने की कोई ताकत नही थी। मराठाओ के सैनिक बल अहमदाबाद के काकरिया तालाब पर आकर अपनी छावनी बना चुका था। शहर के हकिम हमिद खा शहर को बचाने मे सक्षम नही थे। प्रजा तो एकदम असहाय थी। बेबस हो गई थी। उनका तो भगवान पर से ही उस समय भरोसा उठ चुका था। प्रजा एकदम भयभीत हो चुकी थी। पर उस समय भगवान के फरिश्ते के रूप मे खुशालचंद सेठ आये। हिम्मत करके वह मराठाओ की छावनी मे गये। बातचीत करके खुद के पास से 5 लाख रुपये देकर मराठाओ को वापिस भेज दिया। इस तरह शहर को विनाश से बचा लिया। नगर जन उस उपकार को भुले ऐसे नही थे। समग्र महाजन मिलकर सेठ के पास गए। और उनकी आना कानी के बाद भी माल की आवक जावक पर व्यापारी वर्ग ने दर सैकडे. 25 पैसे सेठ को कर के रूप मे देने का दस्तावेज करके दे दिया। और कृतज्ञा को दर्शाया। खुशालचंद सेठ ने भव्य शत्रुंजय महातीर्थ का संघ निकाला। मातर तिर्थ का जीर्णोद्वार करवाया। इस प्रकार अनेक विद्य शासन प्रभावना के कार्यो को किया।
खुशालचंद सेठ के तीन पुत्रो मे वखतचंद भाई का व्यक्तित्व जबरदस्त था। पिता की तरह निर्भयता उनमे नजर आ रही थी। इस्वी 1780 मे जब अंग्रेज जनरल गोडार्डे ने अहमदाबाद को लुटने का हुक्म जारी करा उस समर वखतचंद सेठ और उनके बडे भाई नथ्युशा सेठ ने बीच मे पडकर उन्होंने जोरदार प्रयत्न करके नगर को लुटने से बचाया। उनका राजकर्ता ओ और प्रजा जनो मे खुब मान था। गायकवाड पेश्वा की ओर से उन्हे छत्री पालखी रखने का अधिकार था। उनके सात पुत्र और उजमबाई नाम की एक पुत्री थी।