सभा: दूसरे धर्मों की तुलना में हमारे धर्म में परिवेश की मर्यादा में इतनी छूट कैसे मिली?
छूट किसने दी? हमारे धर्म ने ऐसी कोई छूट नहीं दी है। यह छूट तो आपने खुद ही ले रखी है।
हम अक्सर पूरे दबाव पूर्वक कहते हैं, लेकिन आप हमारी कहां सुनते हो? आपको याद नहीं होगा कि इसी वालकेश्वर-चंदनबाला में 7-8 वर्ष पहले रविवार की सभा में मॉर्निंग वॉक के लिए जाने वाले बड़ी-बड़ी उम्र के, दादा बन चुके लोग छोटी-छोटी चड्डियां पहनकर जिनालय में चले आते थे, इस बारे में विस्तार से जरा जोर से कड़े स्वर में मैंने कहा था। सुबह वॉक करने के लिए कपड़े पहनकर आप निकले हो, वही कपड़े पहनकर आप अपने ऑफिस में जाते हो, ऐसे कपड़े पहनकर किसी मंत्री से मिलने जाते हो? नहीं, तो त्रिलोकीनाथ के दरबार में आप इस प्रकार कैसे जा सकते हो? ऐसे लोगों के लिए जब मैंने कहा था, तब मुझे अच्छी तरह से याद है कि एक महानुभावने भरी सभा में खड़े होकर मुझसे कहा कि ‘महाराज साहब! हमारे लिए दो बार घर जाना और वापस आना संभव नहीं। एक तो बड़ी उम्र, ऊपर से घुटनों की तकलीफ है। ऐसे में आप भी ऐसा कहेंगे तो हमारा दर्शन करना बंद हो जाएगा और अगर हमारा दर्शन करना बंद हुआ तो इसका सारा दोष आपके सिर होगा।’ ऐसे व्यक्ति ऐसी बातें करें तो अंतराय के दोष से डरनेवाले हमारे साधु घबरा जाते हैं; ढीले पड़ जाते हैं; लेट-गो करते हैं और जब हम डरने लगते हैं तो आप में से ऐसी पुण्यआत्माएं हमारी सिर पर सवार हो जाती है। बाकी समझदार व्यक्ति से कहना पड़े की त्रिलोकपति प्रभु के दरबार में कैसे कपड़े पहनकर जाए? केसी मर्यादा के साथ जाए? आप किसी मामूली अधिकारी से भी मिलने जाते हैं तो कितनी मर्यादाओं का पालन करते हैं? आप का काम कराने के लिए उसे कैसे-कैसे खुश करते हैं? उसे क्या पसंद है और क्या नहीं इसका भी आपको पता होता है। आपको कोई भेंट ले जानी होती है तो क्या ले जाए इस बारे में 10 बार सोच कर फैसला करते हैं कि क्या ले जाए जो उन्हें पसंद आए? वहां इतनी सावधानी रखते हो तो त्रिलोकपति के दरबार में जाते समय आपको कितनी सावधानी रखनी चाहिए?
सभा: दर्शन बंद करने में ज्यादा पाप कि साधु डरकर ढीला पड़ जाए और उससे जो अविधि होती है, उसमें ज्यादा पाप है?
योगवंशिकी में पूज्यपाद उपाध्यायजी महाराज ने कहा है कि अविधि का खंडन जोर-शोर से करना चाहिए। विधि मार्ग की स्थापना भी जोर-शोर से करें किंतु जब तक विधि-मार्ग की स्थापना न हो तब तक अविधिवाली क्रिया बंद नहीं कराए, परंतु आप और अविधि करें यह हमें कतई पसंद नहीं।
सभा: यह असभ्य वस्त्र पहनकर कोई जिनालय में न आए ऐसा सुनिश्चित किया जा सकता है न?
बिलकुल किया जा सकता है। आज ही निर्णय कर लो कि जिनालय तथा उपाश्रय में युवा हो अधेड़ हो, बुजुर्ग हो या वृद्ध हो; कोई भी हाफ पेंट और अर्ध वस्त्र पहनकर न आए। यह बात पुरुषों के लिए जितनी लागू होती है, उतनी ही महिलाओं के लिए लागू होती है। महिलाओं में भी उनकी संपत्ति, उम्र तथा भूमिका के अनुसार उत्तम-मूल्यवान मर्यादा संपन्न कपड़े होने चाहिए। देखनेवाले को लगे कि यह कुलीन और मर्यादा सम्पन्न श्राविका है। उन्हें देखकर ऐसा नहीं लगना चाहिए कि यह किसी फैशन-शो अथवा फिल्मफेयर समारोह में जानेवाली महिला है। मात्र कानून बनाकर नोटिस बोर्ड पर लिखने से कोई काम नहीं होगा। इसके लिए जिसका वजन पड़े ऐसी 4 आंखें यहां खड़ी रहनी चाहिए की उन आंखों की शरम की जाए। शर्म से भी यह वस्तु धीरे-धीरे बंद हो जाए। 10-10 प्रबंधकों का ग्रुप बनाएं, बारी-बारी से दो-दो घंटे खड़े रहे जो भी छोटे, मर्यादा रहित अथवा अभद्र वस्त्रों में दिखाई दे, उनसे हाथ जोड़कर कहे, ‘प्रभु के मंदिर की मर्यादा बनाए रखने के लिए यह निर्णय लिया गया है। आपको भी इसमें सहयोग देना है।’ फिर देखो! परिणाम आता है कि नहीं?
सभा: राणकपुर में आज भी कुछ मर्यादाओं का पालन होता है।
हां, मर्यादाओं का पालन करना ही चाहिए। आप आज राणकपुर को याद करते हो तो कोई आपके चंदनबाला को याद नहीं करेगा? दीप से दीप जलेगा और इस प्रकार जगह-जगह मर्यादा पर स्थापित होगी। हमें तीनलोक के नाथ के दरबार में कोई जाना बंद कर दे ऐसा नहीं करना है। आने वाले की भावना शुद्ध एवं श्रेष्ठ बने ऐसा प्रयास करना है। परमात्मा के दरबार में आने से किसी को रोकना नहीं है। बल्कि उसे समझा-बुझाकर मर्यादाओं का पालन कराने के लिए तैयार करना है।
सभा:हमारे जिनालय में ऐसे कपड़ों में बहुत कम लोग आते हैं।
जहां कपड़ा सफेद हो वह मामूली दाग भी तुरंत दिख जाता है। यहां दो व्यक्ति भी मर्यादा रहित वस्त्रों में आए तो यह भी नहीं चल सकता। हमें ऐसा तो नहीं करना है कि आने वाले व्यक्ति आना ही बंद कर दें, लेकिन ऐसा अवश्य करना है कि आने वाले व्यक्ति की भावना एवं प्रवृत्ति बदल जाए। उसी समय मिथ्यात्व पिघल जाए और सम्यक्त्व का शुभ भाव उत्पन्न हो जाये। एक बार शुभ भाव पैदा हो जाएगा तो आत्मा मार्गस्थ बनकर परमात्मा द्वारा दर्शाए गए साधना के पथ पर तेजी से आगे बढ़ जाएगी।
जिनालय की भांति उपाश्रय में भी इन मर्यादाओं का पालन करना ही चाहिए। उपाश्रय में आने वाली स्त्री-पुरुषों को आने से पहले सोच लेना चाहिए कि वे कहां जा रहे हैं? यह किसी संबंधी का घर नहीं है की जहां चाहे जैसे कपड़ों में आकर खड़े हो जाए; और जैसे संबंधी के यहां मिलने जाते हो और वहां सोफे में धंस जाते हो, वैसे ही संस्कारों से आप यहां आकर हमारे बगल में दिवाल से सटक कर खड़े हो जाएं; ताकि हमें आप से बात करने के लिए अपना मुंह फेरना पड़े। आप आकर हमारे सामने खड़े न रहे।
आप की प्रत्येक प्रवृत्ति में कैसा विवेक झलकना चाहिए? एक मां अपने नन्हें बालक को उंगली पकड़कर एक-एक वस्तु जैसे सिखाती है, वैसे ही शास्त्रकार भगवंत भी हमें सिखाते हैं। यह सभी बातें ‘उचित आचरण’ गुण के वर्णन में बतानी है। आपका जीवन ऐसा बनाना, यह आपने ज्ञानी कहते हैं- यह बलहारी जैन शासन की है।