ब्रिटेन के एक सफल प्रधानमंत्री और दूसरे विश्वयुद्ध में प्रथम दो अंगुली को “v” आकार में दर्शा करके विश्व को “v” फॉर विक्टरी का सूत्र देने वाले विन्स्टन चर्चिल ने स्वयं की आत्म कथा में खुद के बचपन की एक सुंदर बात को बताया।
हम उस व्यक्ति के बचपन की बातो का स्मरण कर रहे है जो अपने देश के सर्वोच्च पद पर खुद की काबलियत और मेहनत से पहुंचा है। जिसने विश्व को फर्स्ट टाइम जीत का सूत्र दिया है।
अरे वही चर्चिल विद्यार्थी की अवस्था में साव बुद्धू था। उस ज़माने में ब्रिटेन में स्कूलो के अंदर student के लिए लेटिन भाषा सिखाना एक दम ज़रूरी था। हमारे देश में जिस तरह संस्कृत भाषा समग्र भारतीय भाषाओ की जन्मदात्री है। सभी भाषाओ का मूल है। उसी तरह ब्रिटेन में लेटिन भाषा अंग्रेज़ी फ्रेंच,जर्मन, स्पेनिश सारी ब्रिटिश भाषाओ का मूल है। जिसे लेटिन भाषा नही आती है वह अँग्रेजी भी सही रूप से नही सिख सकता है। इस तरह की मान्यता ब्रिटिन में उस समय थी। बालको को शुरुवात से ही लेटिन भाषा सिखाने में आती है।
लेटिन भाषा सिखाने के बहुत सारे प्रयत्न करे पर चर्चिल को लेटिन भाषा आई ही नही। शिक्षको ने भी खूब मेहनत किया परुंतु परिणाम शून्य ही रहा है। चर्चिल को लेटिन भाषा पढ़ना पसंद नही और उसे आती भी नही। चर्चिल ब्रिटेन के प्रतिष्ठित घराने का लड़का था। इसलिए उस पर शिक्षक विशेष ध्यान देते थे। परतुं उस बच्चे का दिमाग किसी भी तरह से लेटिन भाषा बैठ ही नही रही थी। अंत में शिक्षक भी हर गए और उन्होंने चर्चिल पर बुद्धू student का लेबल लगा लिया ।
चर्चिल लिखते है की उस समय सभी उसे बुद्धू विद्यार्थी कहते थे पर मैंने हिम्मत नही हरी। लेटिन भाषा नही आयी तो नही आयी। पर लेटिन भाषा के आधार के बिना ही मैंने अंग्रेज़ी पर खूब मेहनत करी और आख़िरकार में English सिख ही गया। आगे चल कर चर्चिल ने अंग्रेजी भाषा पर अदभुत प्रमुत्व् प्राप्त किया और अंग्रेजी के विद्वान लेखक के रूप में प्रख्यात हुए।
सतत मेहनत और संकल्प के साथ जो खुद को तैयार करता है। उसके कदमो में सिद्धि आ कर झुकती है।
जीवन तेज तराट लोग ही सफल होते है ऐसा नही है। सामान्य बुद्धि और देखाव वाले इंसान भी सतत मेहनत से सफलता को पाते है।