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एक भी फूल पर शाम तक निशानी नही रही यू तो सुबह कितनी ओस थी

नदी के प्रवाह मे जितने मोड होते है उससे ज्यादा मोड नारी की जिंदगी मे होते है। मै नारी के देह की बात नही कर रहा हूँ, उसकी जिन्दगी की बात कर रहा हूँ। मै एक्सप्रेस, हाई- वे जैसी सपाट समतल घटना विहिन जिन्दगी की नही बल्कि उस जिन्दगी की बात कर रहा हूँ जहाँ हर कदम पर उबड- खाबड़ है। जहाँ बार- बार बम्पर है। चेतावनी है। जहाँ कल्पना शक्ति भी पानी भरे एसी वार्तात्मक घटनाएँ है। ऐसी ही एक रसपद वार्ता की स्वामिनी विनिता की बात है।

एक दोपहर को विनिता अपने पति के साथ डाक्टर के पास गई और बोली- डाँ, मुझे दो बालक है और अब टयुबेक्टोमी का आपरेशन करना है। डाँ ने कहाँ आपका निर्णय पक्का है पर फिर भी मै एक सलाह देना चाहूँगा- अभी आपके बच्चे छोटे है तो थोडा रूको। समय अनिश्चित होता है। एक माँ ने ऐसा ही करा, उसके तीन छोटे बच्चे थे और एक आकस्मात काल का भोग बन गए। परन्तु पुनः कभी वह माँ नही बन पाई। विनिता डाँ की बात समझ गई और बोली मै पाँच- सात साल बाद मे आपरेशन कराऊंगी। वह डाँ के मिलकर जाते हुए बोले- साहेब हम अब बाद मे आयेंगे।

आपको लग रहा होगा मोड कब आयेगा तो वह आएगा।

वह यहा से उठा और घर पहुंचा और आचानक से उसे हार्ट अटैक आएगा और विनिता का पति इस दुनिया को छोड़कर चल बसा।

एक माह के बाद वह अन्य कोई तकलीफ के लिए डाँ के पास गई। पति के विषय बात निकली तो उसकी आँख मे आसु थे। अब तो बस मेरा आधार मेरे बेटे है। उन्हे पढाना- लिखाना, उनका सुख ही मेरा सुख है।

दो माह के बाद वह वापिस आई और डाँ से बोली- डाँ- कोई अच्छी दवाई लिख दोना। डाँ के पुछने पर पता चला की यह नारी नाम की नदी फिर से बालक लेने वाली है। नारी ने कहाँ- दस दिन के बाद मेरा लग्न है। और मै नही चाहती की मुझे फिर से प्रेग्नेन्सी रह जाय।

लग्न ? इतनी जल्दी? कोई तकलीफ? आर्थिक परेशानी? विनिता ने कहाँ- नही- नही! कोई तकलीफ नही है। मुझे मेरी जिन्दगी का भी विचार करना पढेगा ना। अभी तो मुझे 28वा साल ही चल रहा है। मन से कितने ही समाधान करूयह शरीर थोड़ी साध्वी हो गया है?

दोनो लडको का क्या? तो उसने कहाँ- मेरे खुन को थोडी ही छोडकर जाऊंगी? सामने वाला पात्र समझदार है। वह मेरे बेटो को बाप की तरह प्रेम और नाम दोनो ही देने को तैयार है। विनिता ने अपने जीवन को 180° डिग्री घुमा दिया था।

सात- आठ माह के बाद वह पुनः आयी । उसको देखकर डाँ पहले पहचान नही सका। पहले से ज्यादा ह्र्ष्ट- पुष्ट थी तो वह पहचान मे नही आयी। उसके वाणी- वर्तन से लग रहा था कि वह जाने पहले पति की मृत्यु के ऊपर ईश्वर का आभार मान रही थी।

डाँ ने पुछा- बच्चो के प्रति नये बाप का वर्तन कैसा है? जवाब आया- उन्हे तो मेरे दोनो बेटे खुब पसंद है। परंतु अब मुझे ही मेरे बेटे चुभने लगे है। दोनो जागते है तो हम….

मैने तो पति से कह दिया है कि दिवाली के बाद दोनो को हास्टल मे रख दो। पुरी जिन्दगी इन दोनो बालक की चिन्ता मे बरबाद थोडी ही कर सकती हूँ।

विनिता नाम की नदी का विचित्र मोड मेरे लिए अनधारा और आघात जनक था।।

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