मनुष्य भव तभी सार्थक हो सकता है जब हम योग में जुड़े। इंद्रियो की अधीनता को समाप्त करे तभी कल्याण होता है। इंद्रियो की अधीनता के कारण ही अनादी काल से संसार में अटक रहे है। वासना की आग हमें संसार में सेक रही है। हम इसे सुख का भ्रम समज बेठे है तो वास्तव में हम ओर ज़्यादा दुखी हो रहे है। हमारे दुखी होने कारण इंद्रियो की परवशता है। हमें इसे छोड़ना होगा आगे बढ़ना होगा पुदगल के राग को छोड़कर आत्मा का राग जगाना होगा। पुदगल की प्रीति को छोड़कर आत्मा की प्रीति करनी होगी। वैराग्य भावो से आत्मा को श्रृंगारित करना होगा। मोह के श्रृंगार को उतारना होगा। देहिक आकर्षण को छोड़कर आत्मिक आकर्षण की ओर प्रयाण करना होगा हमारे जीवन को गुरुदेव के चरणो में अर्पण करना होगा। आत्मा को भ्रमित करनेवाले सारे तत्वों से बचना होगा। वितराग का गुंजन हर क्षण हृदय में करना होगा तभी हम आगे बढ़ पाएँगे। भोग के दोर में योग का रिश्ता जोड़ पाएँगे। इतनी तैयारियाँ हम लोग बताने को तैयार है। प्रभु का शासन मिला संयम का पंथ मिला गुरु का संग मिला शुभ परिणामों की धारा मिली यह सब प्राप्त होने के बाद भी एक छोटा सा निमित्त हमें गिरा सकता है। एक छोटा सा अशुभ परीबल हमारी शुभ विचारधारा को तहस नहस कर देता है। अनंत संसार को बढा देता है। चोतरफ़ा विनाश का सर्जन करता है। भयंकर दुःख की परम्परा देकर ले जाता है। क्या यह सब पाने के लिए ही मनुष्य भव है क्या? तो एक संकल्प करो हम हमेशा इसलिए ही प्रयत्न करेंगे की बस हमारा यह मनुष्य भव सार्थक बने। अशुभ परिबलो से सतत आत्मा का रक्षण करने के लिए हम तैयार रहेंगे। बस एक सैनिक बन कर के हमें इस मनुष्य भव की सार्थकता के लिए पहेरदारी करना है।