लगभग 70 सालो तक की उज्जवल और यशस्वी सेठ कस्तूर भाई लाल भाई की यशोगाथा को हम थोडा इस तरह विभाजीत कर सकते है। देश के कुशल और जोशीले उद्योगपति के रूप में, जैन संगो के मुख्य कप्तान के रूप में, गुजरात के श्रेष्ठ महाजन के रूप में, संग की सम्पति के रक्षक के रूप में, विशिष्ठ राष्ट्रीय व्यक्ति के रूप में, इंफ्रास्ट्रक्चर, जिर्णोद्वार के निष्नात के रूप मे।
उनके जीवन की अर्थोपार्जन की प्रवृत्ति को छोड़कर के सारी प्रवृत्ति लोक कल्याण और राष्ट्र उत्थान के साथ जोड़ी हुई है। जिन्होंने समय, शक्ति, बुद्धि और धन का जबरदस्त उपयोग उन्होंने देश, समाज, धर्म के लिए किया है।अरे जिन की उद्योगपति के रूप में की गयी प्रवत्ति देश की संपत्ति और शान बढ़ाने वाली थी। उन्होंने सारी प्रवृत्तियो की शुरुवात जीवन की उगती उम्र से ही कर दी थी जो उन्हें कृतार्थता की तरह ले कर के चली गयी थी।
उगती उम्र के अंदर इंसान परमार्थ की और जाता है। तो उसमें उसके पर्वजो की उज्वल वंश परंपरा उनकी गुण संपत्ति द्वारा दिए संस्कर के कारन ही युवावस्ता से देश कल्याण समाज कल्याण संग कल्याण के कार्यो में प्रवृत्त हो गए थे।
इस सेठ परिवार के अनेक पूर्वजो ने मुश्किल समय में धर्म का, गुजरात का गुजरात के पाटनगर अहमदाबाद का रक्षक करके खुद के नगर सेठ के बिरुद का श्रेष्ठीवर्य के रूप में महाजन का नाम सार्थक किया है।
गुजरात भारत का एक अंग होने के साथ विश्व को हस्तधूनन करने के लिए हिंदुस्तान तैयार है क्योंकि इसका जिमणा हाथ गुजरात है। यहाँ की संसृक्ति ही निराली है। खुद की संस्कारिता, धार्मिकता उदारता और महाजनो की संस्थाओ के कारण गुजरात हमेशा शील समन्वय की भावना का आदर करते आया है। यूह भी जैन संगो की दृष्टि से अहमदाबाद का स्थान बहुत विशिष्ठ ही इसे जैनो का गढ़ कह सकते है। राजनगर और जैनपुरी के रूप में यह विख्यात हुआ है। गुजरात और अहमदाबाद राज मान्य और पूजा मान्य महाजनो राजसत्ता और प्रजा के बीच सेतु थे। जो अन्याय को और क्लेश को कण्ट्रोल में रखते थे। व्यापर और व्यवहार शक्ति और समाधान पूर्वक चालू रखते थे। वातावरण को अच्छा बनाये रखने के लिए हमेशा प्रयत्नशील रहते थे। माथे पर भारी पड़े ऐसे लोगो का और राजसत्ता का सामना करने में भी पीछे नही रहते थे। ऐसे सेठ कस्तूर भाई लाल भाई के पर्वजो की हिम्मत थी। साहसवान , प्रभावशाली, खमीरवंत पूर्वज इस परिवार के थे। इतिहास इसकी साक्षी भरता है।
धर्म भावना तो उनके रोम रोम में थी। धर्म के लिए वह हर श्रण तैयार थे। चाहे फिर साहस हो या उदारता। एक हाथ में सहास और एक हाथ में उदारता लेकर वह परिवार जिनशासन का सेवक बनकर तैयार था।
इस परिवार की पर्वजो में 10 पीडी पहले शक्तिदास शेषकरण जवेरी आये। उनके प्रताप, प्रभाव धैर्य पुरुषार्थ आदि को हम अगले दिन इसी समय पर सारी बात करेगे।