वि. संवत् 1868 की घटना वखतचंद सेठ पूरे परिवार के साथ भव्यतिभव्य धर्म प्रभावना करके शत्रुंजय महातीर्थ पर 99 यात्रा करने के लिए गये। उनके साथ उनकी पुत्री उजम बाई भी गई थी। परिवार गिरिराज मे पहुंचा और यात्राओ को प्रारंभ करी अभी तो only for 20 यात्रा पूर्ण हुई और परिवार वज्रपात जैसा दुःख आगया। उजम बाई के पति अचानक से मृत्यु हो गई । उनके पिता युवावस्था मे स्वर्ग सिधार गये। सभी जगह अहकार मच गया। बडे ही लाड प्यार से बेटी को बडा करा था। 7 भाईयो के बीच मे एक बहन थी। सातो की लाडली थी। और उस बहन का जीवन रथ टूट गया था। परिवार पुरा शौक मे डूब गया था। अब यात्रा क्या करना और पालीतना मे क्या रहना। वयोवृद्ध माता पिता के दुख का कोई पार नही था। सग्गे संबंधीयो ने सलाह दी। अहमदाबाद से कागज आए। सभी पर एक ही बात पर जोर था कि आप लोग अतिशीघ्र अहमदाबाद वापिस लौट आए। परिवार भी पुनः अहमदाबाद जाने की तैयारी करने लगा था। क्योंकि पुरा परिवार दुःख के पहाड मे दुबा हुआ था। इस समय सभी के दिल और दिमाग मे धर्म का विस्मरण हो गया था। उसी समय उजम बाई ने अपनी समझदारी, हिम्मत और समता का परिचय दिया। उन्होंने बडे ही गंभीर बनकर स्वजनो से कहाँ- बनना था वह बन या। यात्रा बंद करके पुनः अहमदाबाद जाने से बिगडी बाजी वापिस सुधरने वाली नही है। वह वापिस आने वाले नही है। इस निमित्त से धर्म मे अंतराय क्या खडा करना। मुझे परमात्मा की भक्ति बंद करने का निमित्त उन्हे नही बनना है। वह तो हमेशा ही मेरी आराधना के सहायक रहे है। मै उन्हे इस दोष का निमित्त नही बनने देना चाहती हूँ।
लोगो के बीच मे असहाय बनी सन्नारी ने वास्तव मे धर्म का तेज बताया। उनकी धर्म की भावनाओ को कोटि कोटि प्रणाम है। ऐसी धर्म भावनओ से ही जिनशासन की विजय पताका विश्व मे लहरा रही है।
पुरा परिवार यात्रा पूर्ण करके पुनः लौटा। वह हेमा भाईसेठ की बहन प्रेमा भाई सेठ की बुआ तरीके जग मे प्रसिध्द हुए। इस विश्व काल मे उनका धर्म रंग पक्का था। एक आदर्श उन्होंने जगत के सामने प्रस्तुत करा था। आज भी गिरिराज पर उनके नाम की टूंक है। उन्होंने धर्मशाला भी बधाई है।
ऐसी देवीयो की समता और दृढ़ता से ही शासन की जय जय कार होती है ।