जीवन को जीवन्त रखने का औषध संवेदना है। संवेदना मानव को कोमल बनाती है। वर्तमान समय की सबसे बडी समस्या संवेदना का आभाव है। संवेदना पक्षीयो के गुंजराव को मनाने का आन्नद है तो किसी की चिख को सुनने का एहसास। कुंपाल की सरलता तो पत्थर की कठोरता है।
संवेदना मे वेदना है। संवेदना यानि दूसरे की वेदना । खुद को लगे और जो पिडा होती है वह वेदना है। परंतु जब दुसरो को ठोकर लगे और उसके लिए जो वेदना होती है वह संवेदना है। मानव पर हर घटना और दुर्घटना का असर होना चाहिए। अच्छा देकर वाह बोले तो खराब देखकर आह निकल जाए।
मात्र दुःख ही नही सुख की भी अनुभूति होनी चाहिए। बहुत से लोग खुद की जात को इतना दुखी मानते है कि उनके पास जो सुख होता है वो भी मान नही सकते है। बालक को इसलिए मासूम कहते है कि उस पर हर संवेदना जल्दी से असर करती है। उसे लगती है तो रोता है। खिलोने बताओ तो हँसता है।
मन मे विचार आता है कि हम क्या बालक की तरह हँस नही सकते? बालक की तरह हँसने के लिए उसके जैसा संवेदना होना चाहिए। बालक की आँख मे जितना कौतुहल है उससे अनेक गुणा ज्यादा संवेदना है इसलिए वह जल्दी से व्यक्त कर देता है।
हर एक इन्सान को कुछ कहना है। व्यक्त करना है। दुःखी होता है। उसे आँसू पोछने वाला चाहिए। परंतु हर एक व्यक्ति के मन मे एक प्रश्न है – मेरी प्रमिका, मेरी पत्नी, मेरा भाई, मेरी बहन क्या मुझे समझ पायेंगे? हमारे साथ मे रहने वालो का प्रेम, स्नेह और दुःख कितना स्पर्श करते है। संबंध हमेशा संवेदना पर टिकते है ।
संवेदना पराये मानव को भी अपना बना देती है। एक घटना याद आ रही है। एक हिन्दुसतानी जोड़ा काम के कारण अमेरिका मे बसा था। उसके आस पास सारे अमेरिकन लोगी रहते थे।
एक दिन छुट्टी का दिन था। पति पत्नी घमने के लिए निकल गए। एक अमेरिकन वृद्ध फूटपाथ पर चल रही थी। अचानक माजी गिर गई। माजी के पैर मे खुन निकल रहा था। पति पत्नी उनको दवाखाने ले गए, ड्रेसिंग कराई और घर छोडने गए।
माजी अकेले रहते थे। उन्होंने कहा उनका पुत्र पत्नी संतानो के साथ दुसरे शहर मे रहते है। काम के कारण से मेरे पास नही आ सकता है। मेरा बेटा आता तो अच्छा लगता पर नही आता तो कोई शिकायत नही है।
उन माजी और दंपति के बीच संबंधो का सिलसिला 5 साल तक चला। छुट्टी के दिनो मे दोनो माजी को घुमाने ले जाते। पत्नी दो टाईम माजी के घर जाकर दवाई पीलाके आती थी। परदेश की धरती पर मातृत्व का एक अनोखा संबंध धडक रहा था। विदेशी वृद्धकी सेवा करके दोनो को भारत मे रहते माँ- बाप की सेवा करने का एहसास होता था।
एक दिन माजी गुजर गए। कोई पास का रिश्तेदार नही आया। आखरी मे दम्पति ने माजी की अंतिम विधी करी। दुसरे दिन माजी का वकिल आया। और एक कवर देकर गया। जिसमे माजी ने अपनी तमाम जायदाद दम्पति के नाम करी थी। और निचे लिखा था भगवान के पास जाकर मै माँगूगी की आवते जन्म मे तुम मेरी संतान हो। जिससे मेरा मातृत्व सार्थक हो।
अगले दिन माजी का पुत्र और पत्नी उस दम्पति के पास आए और फूलो का गुलदस्ता दिया। और बोले हम आपको Thank you कहने आये है। तुमने मेरी माता का खुब ध्यान रखा। इसलिए मेरी माता की सारी जायदाद तुम्हे मुबारक हो। दुसरा मै तुम्हारे लिए क्या कर सकता हूँ?।
दम्पति ने कहाँ- तुम हमारे लिए एक छोटा सा काम करो। हमारे लिए जो ये फूल लेकर आए हो उसे लेकर अपनी माता की कबर पर चडा कर आ जाओ। वह अंत समय तक तम्हे याद करती रही। मेरा बेटा आएगा। आत्मा जैसा कुछ होगा तो शायद तुम्हारे हाथो से चडे फूलो को देखकर माताजी की आत्मा को शांति मिलेगी। इस समय अमेरिकन युवक की आँखो के कोनो मे भीनाश जैसा कुछ था। वह Thank you बोलकर चूप चाप चले गए।
संवेदना कभी आँसू बनकर आँखो से गिरती है तो कभी आशिर्वाद बनकर आकाश मे से बरसती है। किसी लेखक ने कहाँ है – संवेदना से भरपूर दिल सबसे बडी दौलत है। कारण? धन तो बदमाश आदमी के पास भी होता है। घर से मस्जिद तो बहुत दुर है। चलो यू करते है कि किसी रोते हुए बच्चे को हसाया जाए। रोते हुए बालक को हँसाना भी प्रभु की प्रथना और खुदा की बंदगी है।
“संवेदना एक ऐसी भाषा है जो
बहरा सुन सकता है और
गुंगा बोल सकता है” ।।