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हमारा देश आगे बढ़ रहा है

हमने 1947 से लगाकर 2016 तक कई विश्व किर्ति मान को स्थापित किया है। कई जगह हमने विश्व को एक नई राह बताई है। हमने आकाश से लेकर पाताल तक खुद को साबित किया है। हमने हर क्षेत्र मे बढोतरी करी है।

परंतु “अति सर्वत्र वर्जित” के सिद्धांत को हम भूल गए है। हमारा लक्ष्य आज पैसा बन चुका है। पर हम इस पैसे के पीछे हमने हमारी संस्कृति को छोडना प्रारंभ कर दिया है। पैसा जीवन मे बहुत कुछ होता है। पर पैसे के पीछे हम हमारी सभ्यता नही छोड सकते है। हम I.T क्षेत्र से करोडो डाॅलर देश मे लाकर देश को विकास की ओर अग्रसर कर सकते है। परंतु हम इसी के साथ वहाँ की पाश्चात्य संस्कृति को भी अपना कर हमारी सभ्यता को भूल रहे है।

हम वहाँ से अर्निंगस को बढाना है। परंतु वहाँ की विकृति को नही लाना है। क्योंकि वहाँ की विकृति इस देश को व्यसन मुक्त नही बना सकती है। हमारी संस्कृति मे स्वाभिमान है। वफादारी है। कर्तव्य निष्ठा है। खुमारी है। समर्पण है। यह गुण वहाँ पर नही है। हमे इन गुणो का रक्षण करके विकास की ओर आगे बढना है। हमारा लक्ष्य विकास है। देश की उन्नती है। परंतु हमारी खुमारी को खो कर आगे नही बढ सकते है।

मेरी संस्कृति पशुओ से प्रेम करना सिखाती है। गोयमे वसति लक्ष्मी: यह हमारी संस्कृति है। हमारी संस्कृति पुज्या है। पश्चिम की संस्कृति भोग्या है।

हम आज किस ट्रेड पर चल रहे है? हमारे देश की आर्थिक उन्नति के साथ नैतिकता का पतन नही होना चाहिए। हमे आर्थिक विकास के साथ नैतिक उत्थान चाहिए। मेरी भाषा बदल रही है। पर भाषा के साथ मेरे संस्कार नही बदलने चाहिए। मेरी संस्कृति मे नारी का अंग प्रदर्शन नही है जो आज इस देश मे बहुत बडे पैमाने पर हो रहा है। यह हमारी संस्कृति के साथ खिलवाड़ है।

मुझे मेरे देश को आगे बढ़ाना है।
परंतु कदापि देश को बदलना नही है।
देश की सभ्यता मे मीरा है, लक्ष्मी बाई है।
आज के एक्टर्स देश को बर्बाद कर रहे है।
संयुक्तता जैसे लोग देश को आबाद कर रहे है ।।

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