इस संसार के युद्ध मे तीन लोग अपनी अपनी जगह संभालते है जिससे यह युद्ध बडा ही रोचक और रोमांचकारी हो जाता है। माँ और श्रीमति की जंग मे मरण तो only for पति का ही होता है। क्योंकि बहु और सास के विचारो मे मतभेद होना स्वाभाविक है। जेनरेशन गैपिंग इसका मुख्य कारण है। परंतु हर मतभेद का समाधान चर्चा से आ सकता है। कही न कही दोनो के Ego टकराते है और जिससे दोनो ही सही को स्वीकार करने मे डरते है।
एक घर की घटना है। सास, बहु और बेटी तीनो ही बैठे थे और बहु ने ननंद को सलाह दे दी कि अभी आपकी स्थिति अच्छी नही है तो हर 15 दिन मे तिर्थं यात्रा करने नही जाना चाहिए। पहले जीवन यात्रा को सुधारना चाहिए।
शायद यह जवाब से सासुमा को बुरा लगा। वह नाराज हो गये। यह अंधश्रध्दालु समाज के उपर बुद्धि के साथ विवेक युक्त जवाब दिया था। बहु के जवाब से नंदन को भी बूरा लगा। क्योंकि उसे अपना ego खोने का अफसोस था। बहु ने एकदिशा दी थी जिससे उनके जीवन मे उजाला हो सके। परंतु हर व्यक्ति मे उस उजाले को स्वीकार करने का सहास भी तो होना चाहिए।
“और ऐसे हालातो मे बेटे की दशा लकडे जैसी होती है। वह किधर भी नही बोल पाता है। इधर बोलेतो पत्नी नाराज उधर बोले तो माँ नाराज।
इस तरह के गलत दिशीझन ही घर के हालातो को बिगाड़ते है। बेटी के सारे गुण दोषो के साथ उसे स्वीकार करते है। परंतु बहु की छोटी सी गलती भी स्वीकार करने का सहास नही होता है। बेटी से घी का डिब्बा गिरे तो माफ कर देते है। बहु से तेल की चमच गिरे तो नाराज हो जाते है।
शायद हमने जीवन वाइल्ड जानवर की life जैसा बना लिया है। वह जिस दाँत से हिरण का शिकार करता है उसी दाँत से अपने बच्चो को उठाके एक से दूसरी जगह ले जाता है।
एक समय उस घर मे एक संत का पदार्पण हुआ। घर के सारे सदस्य एक दूसरे से नाराज थे। सब ने अपनी अपनी समस्या संत के सामने रखी। संत ने अच्छी बात बताई – की
“आग लगे बिना कभी धुआ नही होता है।
पेट्रोल बिना कभी आग नही लगती है ”
पर जब आग लगी हो तो यह सब बाते नही सोची जाती है। सर्वप्रथम आग बुझाने प्रयत्न fire brigade करती है। इसी तरह घर मे जब आग लगी होती है उसे बुझाने के तटस्थ जज की जरूरत होती है।
वह नरोवा किञ्जरोवा की तरह नही बल्कि पक्ष बिना सही न्याय करने वाला होना चाहिए। काच तभी साफ होता है जब उस कपडे पर बिल्कुल भी धूल न हो यानि कपडा क्लीन होगा तभी कांच साफ होगा।
घर मे बेटे को न्याय का धर्म काटा क्लीन रखना होगा। फिर गलती चाहे पत्नी की हो या माँ की गलत को ही टकोर होनी चाहिए।
” तुम न मानो मगर हकीकत है
अनुशासन घर की जरूरत है। ”
जो माँ है वही सास है, फिर माँ क्यो अच्छी और सास क्यो बुरी हो?
जो बेटी है वही बहु है फिर बेटी क्यो अच्छी और बहु क्यो बुरी है?
बेटी का दुख सिने को चिरता है। बहु से नजरे क्यो नफरतभरी है?
लोभियो ने बेशक बहु पर बेशक तेल डाला तर जभी जली है बेटिया ही जली है।
अनुशासन को लाकर के संसार को रणभूमि नही उद्यान भूमि बनाये।