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पत्र की पूजा

एक सेेठ बाहरगाँव जाने की तैयारी कर रहे थे। और अचानक से उनका विश्वसनीय मुनिम दुर्घटना मे मृत्यु को प्राप्त हो गया। सेठ भयंकर द्विधा मे आ गया। उन्हे जरूरी बाहरगाँव जाना था। अब उनके लिए बडी मुश्किल खडी हो गई थी। वह बाहर गए बिना रह नही सकते थे और पेढी की उनकी अनुपस्थिति मे सम्भालने ऐसा अनुभवी विशिष्ट आदमी उनके पास नही था। अब ऐसी हालत मे करना तो क्या करना?।

अब उनके पास कोई विकल्प नहीथा। उन्होंने तात्कालिक एक नए मुनिम को नियुक्त करा। इस नए मुनिम को व्यापार का कोई अनुभव नही था। अब ऐसे मे सेठ ने दिमाग लगाया और नया रास्ता खोज लिया। सेठ ने मुनिम से कहा- मै बहार जा रहा हूँ। मै तुझे रोज एक पत्र लिखुंगा। इन पत्रो को तुम बहुत महत्व का समझना।

अनेक बातो की समझाइश देकर सेठ बाहर चले गए। और उस अनुभव विहीन मुनिम को पत्र का खास महत्व देने का कह गए। अब बाहर से बाजार के हिसाब से वातावरण के अनुसार कितने सौदे करना? किससे करना? काई के करना? यह सारी बाते वह letter मे लिखकर भेजते है। एक माह तक यह letter लिखने का क्रम चला रहा।

एक महीने बाद सेठ स्वदेश लौटकर आ गये। और उस नये मुनिम को बुलाकर पुछा letter मे जो लिखा था उसके अनुसार तुने व्यापार करा है क्या?

मुनिम ने सबसे पहले सेठजी को प्रणाम करा। और उत्तर दिया- सेठजी मै यह जानता था कि आपके letter बडे ही महत्व के है। इस लिए मै आपके letter को बडे ही आदर के साथ मे लेता, मस्तक पर अडाता, शुद्ध घी का दिपक करता, धूप करता। अरे मै जितना भगवान को पुजता उसक तरह आपके letters को भी पूजता था।

सेठजी ने सिर पकड कर बोला- भले आदमी letter को महत्व देना यानि भगवान की तरह पूजना नही होता है, उनके अन्दर जो बाते लिखी होती है उसका अनुसरण करना, आज्ञा का पालन करना होता है। उसमे लिखी सुचनाओ का अमल मे लाना।

अब तुने letter तो खोले ही नही तो उसकी सुचना कहा से अमल मे लाया होगा तेरे से letter की सूचना का पालन करने क्या उम्मीद करे।

शास्त्रो का पूजन करने वाले धूप, दीप से, धर्म- ग्रन्थो का बहुमान करने वाले शास्त्रो बतायी गयी बातो को जानते नही। ग्रन्थो मे बताये गये मार्ग का जीवन मे पालन नही करते है। तो हम भी उस नये मुनिम की तरह मुर्ख ही है। धर्म ग्रंथो के पूजन के साथ उन्हे समझ कर अनुकरन करेंगे तो ही पूजन सार्थक होगा।

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